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गुरुवार, नवंबर 22, 2012

देवउठनी एकादशी(देव प्रबोधनी एकादशी या छोटी दीपावली) इस वर्ष मनाई जाएगी 24 नवंबर 2012 , दिन शनिवार को

 देवउठनी एकादशी(देव प्रबोधनी एकादशी या छोटी दीपावली) इस वर्ष मनाई जाएगी  24 नवंबर 2012 , दिन शनिवार को । 
इस वर्ष भी देवउठनी एकादशी का पर्व भक्तिभाव के साथ मनाया जाएगा। इस अवसर पर हर घर के आंगन में तुलसी मैया की भगवान सालिग्राम से विधि-विधान से विवाह रचाया जाएगा। साथ ही कई तरह के फलों और पकवानों का भोग लगाया जाएगा।

पंडित दयानंद शास्त्री (मोब-09024390067) के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी (देवउठनी )एकादशी कहते हैं। प्रबोधन का अर्थ है- जागना। इस प्रकार देवप्रबोधन का अर्थ होता है- देवताओं का जागना।
जिस तरह मानव रात होते ही सोने चला जाता है, ठीक उसी तरह पुराणों की मान्यता है कि देवता भी एक नियत समय पर सोते और जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
भगवान विष्णु के उठ जाने के बाद अन्य देवता भी निद्रा त्यागते हैं। 
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब-09024390067) के अनुसार छोटी दीपावली के नाम से जाने-जाने वाले प्रबोधनी एकादशी पर चारों तरफ दमकते दीयों की रोशनी दिखाई देगी। शाम होते ही सभी घरों में महिलाएं सोलह श्रृंगार कर तुलसी विवाह की तैयारियों में व्यस्त दिखाई देगी। जैसे सूरज अस्त हुआ घर के आंगन में गन्ने का मंडप सजाकर विधि-विधान से माता तुलसी के साथ भगवान सालिग्राम से शादी रचाएंगे। 
व्यवहार जगत की दृष्टि से देवप्रबोधिनी का अर्थ होता है- स्वयं में देवत्व को जगाना। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य एकमात्र यह है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। भगवान के साथ अपने मन के देवत्व अर्थात् मन को जगा दें। हम हमारे जीवन को जगा दें।


पंडित दयानंद शास्त्री (मोब-09024390067) के अनुसार मूलत: देवता कभी सोते नहीं किंतु हम सोए रहते हैं। मूल भाव यह है कि क
िसी को कष्ट न पहुंचाएं, ईष्र्या, द्वेष के भाव न रखें। सत्य आचरण करें, स्वस्थ प्रतियोगी बनें। यह दृढ़ संकल्प अपने मन में जगाना ही प्रबोधिनी है । ऐसा संकल्प ले कि जो मन को प्रसन्न रखें। हमें अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। इस प्रकार दीपक की भांति जल कर दूसरों को प्रकाश देना ही सच्चा प्रबोधन है।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है।
देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करें।
भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा ,शंख,मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीचये श्लोक पढकर जगाते हैं-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
संस्कृत बोलने में असमर्थ सामान्य लोग-उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण को उठाएं।

श्रीहरिको जगाने के पश्चात् उनकी षोडशोपचारविधि से पूजा करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य (भोग) निवेदित करें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम-संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विवाहादिसमस्त मांगलिक कार्योके शुभारम्भ में संकल्प भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है। अतएव चातुर्मासमें प्रभावी प्रतिबंध देवोत्थान एकादशी के दिन समाप्त हो जाने से विवाहादिशुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब-09024390067) के अनुसार दीपावली के ग्यारह दिन बाद देवउठनी एकादशी पर एक बार फिर से आसमान में धमाकों के साथ सतरंगी छठा दिखाई देंगी। हर घर का आंगन दीयों की लौ से दमकता रहेगा। शाम से लेकर देर रात तक पूजा-पाठ का दौर भी जारी रहेगा। 
इस दौरान घर के आंगन से घंटे-घड़ियाल और शंख ध्वनी के साथ आसमान में लोबान की खुशबू महकती रहेगी। पूजा-अर्चना के दौरान तुलसी मैया और भगवान सालिग्राम को नई फसल के शाक फल का भोग लगाया जाएगा, जिसमें खास तौर पर चना भाजी, शकरकंद, सिंघाड़ा, सीताफल, अमरूद, मूंगफल्ली, पेठा आदि प्रमुख रहेंगे। 
इस दौरान सुहागिन महिलाएं तुलसी माता को सुहाग की सामग्री भी भेंट करेंगी। इसके बाद बच्चों जमकर आतिशबाजी करेंगे, जिससे पूरा आसमान रंगीन धमाकों के साथ गूंजता रहेगा। एक बार फिर चारों ओर दीपावली जैसा माहौल बनता दिखाई देगा।
देवउठनी  एकादशी 24 नवंबर 2012 , दिन  शनिवार को है।  
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी (देवउठनी )एकादशी कहते हैं। प्रबोधन का अर्थ है- जागना। इस प्रकार देवप्रबोधन का अर्थ होता है- देवताओं का जागना।
जिस तरह मानव रात होते ही सोने चला जाता है, ठीक उसी तरह पुराणों की मान्यता है कि देवता भी एक नियत समय पर सोते और जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
भगवान विष्णु के उठ जाने के बाद अन्य देवता भी निद्रा त्यागते हैं। व्यवहार जगत की दृष्टि से देवप्रबोधिनी का अर्थ होता है- स्वयं में देवत्व को जगाना। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य एकमात्र यह है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। भगवान के साथ अपने मन के देवत्व अर्थात् मन को जगा दें। हम हमारे जीवन को जगा दें।
मूलत: देवता कभी सोते नहीं किंतु हम सोए रहते हैं। मूल भाव यह है कि किसी को कष्ट न पहुंचाएं, ईष्र्या, द्वेष के भाव न रखें। सत्य आचरण करें, स्वस्थ प्रतियोगी बनें। यह दृढ़ संकल्प अपने मन में जगाना ही प्रबोधिनी है । ऐसा संकल्प ले कि जो मन को प्रसन्न रखें। हमें अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाएं। इस प्रकार दीपक की भांति जल कर दूसरों को प्रकाश देना ही सच्चा प्रबोधन है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है।
देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करें।
भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा ,शंख,मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि के बीचये श्लोक पढकर जगाते हैं-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
संस्कृत बोलने में असमर्थ सामान्य लोग-उठो देवा, बैठो देवा कहकर श्रीनारायण को उठाएं।
श्रीहरिको जगाने के पश्चात् उनकी षोडशोपचारविधि से पूजा करें। अनेक प्रकार के फलों के साथ नैवेद्य (भोग) निवेदित करें। संभव हो तो उपवास रखें अन्यथा केवल एक समय फलाहार ग्रहण करें। इस एकादशी में रातभर जागकर हरि नाम-संकीर्तन करने से भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। विवाहादिसमस्त मांगलिक कार्योके शुभारम्भ में संकल्प भगवान विष्णु को साक्षी मानकर किया जाता है। अतएव चातुर्मासमें प्रभावी प्रतिबंध देवोत्थान एकादशी के दिन समाप्त हो जाने से विवाहादिशुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।

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