जानिए की रत्न क्या हें..???कब एवं क्यों धारण करें/पहने..???
मनुष्य की सहज प्रकृति है कि वह हमेशा सुख में जीना चाहता है परंतु विधि के विधान के अनुसार धरती पर ईश्वर भी जन्म लेकर आता है तो ग्रहों की चाल के अनुसार उसे भी सुख-दुःख सहना पड़ता है।
हम अपने जीवन में आने वाले दुःखों को कम करने अथवा उनसे बचने हेतु उपाय चाहते हैं। उपाय के तौर पर अपनी कुण्डली की जांच करवाते हैं और ज्योतिषशास्त्री की सलाह से पूजा करवाते हैं, ग्रह शांति करवाते हैं अथवा रत्न धारण करते हैं।
रत्न पहनने के बाद कई बार परेशानियां भी आती हैं अथवा कोई लाभ नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्री के ऊपर विश्वास डोलने लगता है। जबकि हो सकता है कि आपका रत्न सही नहीं हो।
जितने भी रत्न या उपरत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे...। और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने हैं। विविध भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दू एवं गैर हिन्दू धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है। हम अपने जीवन में आने वाले दुःखों को कम करने अथवा उनसे बचने हेतु उपाय चाहते हैं। उपाय के तौर पर अपनी कुण्डली की जांच करवाते हैं और ज्योतिषशास्त्री की सलाह से पूजा करवाते हैं, ग्रह शांति करवाते हैं अथवा रत्न धारण करते हैं।
रत्न पहनने के बाद कई बार परेशानियां भी आती हैं अथवा कोई लाभ नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्री के ऊपर विश्वास डोलने लगता है। जबकि हो सकता है कि आपका रत्न सही नहीं हो।
आधुनिक विज्ञान ने अभी तक मात्र शुद्ध एवं एकल 128 तत्वों को पहचानने में सफलता प्राप्त की है। जिसका वर्णन मेंडलीफ की आधुनिक आवर्त सारणी (Periodic Table) में किया गया है। किन्तु ये एकल तत्व है अर्थात् इनमें किसी दूसरे तत्व या पदार्थ का मिश्रण नहीं प्राप्त होता है। किन्तु एक बात अवश्य है कि इनमें कुछ एक को समस्थानिक (Isotopes) के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या 39000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है।
महर्षि पाराशर एवं वराह मिहिर ने भी इसका संक्षिप्त विवरण अपने ग्रंथों में किया है, किन्तु इनकी संख्या असंख्य बताकर संक्षेप में ही उपसंहार कर दिया है।
केसे करें जाग्रत रत्नों को..???
उदाहरण के लिए हम एक रत्न मूंगा लेते है। इसकी 62 प्रजातियां हैं। किन्तु इनमें मात्र सात ही आज उपलब्ध है। हीरा की 39 प्रजातियां उपलब्ध हैं। नीलम की 65 प्रजातियां उपलब्ध हैं। जबकि इसकी प्रजातियां 400 से भी ऊपर बताई गई हैं। पुखराज की 24 प्रजातियां उपलब्ध है। इसी प्रकार एक-एक रत्नों की अनेक प्रजातियां उपलब्ध है, जो नाम में समान होने के बावजूद भी उनका गुण, प्रकृति, रंग एवं प्रभाव पृथक-पृथक है।
हम उदाहरण के लिए लहसुनिया (Cat's Eye) को लेते है। इसे वैतालीय संहिता में प्राकद्वीपीय मणि भी कहा गया है। इसके अनेक भेद है। जैसे - अवन्तिका, विदारुक, बरकत, विक्रांत, परिलोमश, द्युतिवृत्तिका, नारवेशी, निपुंजवेलि आदि। प्रायः सीधे शब्दों में लहसुनिया को केतु का रत्न माना गया है। किन्तु ध्यान रहे, यदि केतु किसी अन्य ग्रह के प्रभाव में होगा तो यह लहसुनिया उस ग्रह के संयोग वाला होना चाहिए। कोई भी लहसुनिया हर जगह प्रभावी नहीं हो सकता। बल्कि इसका विपरीत प्रभाव भी सामने आ सकता है।
कज्जलपुंज, रत्नावली, अथर्वप्रकाश, आयुकल्प, रत्नाकर निधान, रत्नलाघव, Oriental Prism, Ancient Digiana तथा Indus Catalog आदि ग्रंथों में भी इसका विषद विवरण उपलब्ध है।
कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते है। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अतः इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परिक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा, नीलम, लहसुनिया, मकरंद, वज्रनख आदि। यदि यह नग तराश (cultured) दिए गए हैं, तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेट्स सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है।
कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें, नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह से राहु से होता है, तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी।
दूसरी बात यह कि किसी भी रत्न को पहनने के पहले उसे जागृत (Activate) अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है।
उदाहरण के लिए पुखराज को लेते हैं। पुखराज को मकोय (एक पौधा), सिसवन, दिथोहरी, अकवना, तुलसी एवं पलोर के पत्तों को पीस कर उसे उनके सामूहिक वजन के तीन गुना पानी में उबालिए। जब पानी लगभग सूख जाए तो उसे आग से नीचे उतारिए। आधे घंटे में उसके पेंदे में थोड़ा पानी एकत्र हो जाएगा। उस पानी को शुद्ध गाय के दूध में मिला दीजिए। जितना पानी उसके लगभग चौगुना दूध होना चाहिए। उस दूधयुक्त घोल में पुखराज को डाल दीजिए। हर तीन मिनट पर उसे किसी लकड़ी के चम्मच से बाहर निकाल कर तथा उसे फूंक मार कर सुखाइए और फिर उसी घोल में डालिए।
इस प्रकार आठ-दस बार करने से पुखराज नग के विकिरण के ऊपर लगा आवरण समाप्त हो जाता है तथा वह पुखराज सक्रिय हो जाता है।
इसी प्रकार प्रत्येक नग या रत्न को जागृत करने की अलग विधि है। रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इसे ही जागृत करना कहते हैं।
हम उदाहरण के लिए लहसुनिया (Cat's Eye) को लेते है। इसे वैतालीय संहिता में प्राकद्वीपीय मणि भी कहा गया है। इसके अनेक भेद है। जैसे - अवन्तिका, विदारुक, बरकत, विक्रांत, परिलोमश, द्युतिवृत्तिका, नारवेशी, निपुंजवेलि आदि। प्रायः सीधे शब्दों में लहसुनिया को केतु का रत्न माना गया है। किन्तु ध्यान रहे, यदि केतु किसी अन्य ग्रह के प्रभाव में होगा तो यह लहसुनिया उस ग्रह के संयोग वाला होना चाहिए। कोई भी लहसुनिया हर जगह प्रभावी नहीं हो सकता। बल्कि इसका विपरीत प्रभाव भी सामने आ सकता है।
कज्जलपुंज, रत्नावली, अथर्वप्रकाश, आयुकल्प, रत्नाकर निधान, रत्नलाघव, Oriental Prism, Ancient Digiana तथा Indus Catalog आदि ग्रंथों में भी इसका विषद विवरण उपलब्ध है।
कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते है। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अतः इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परिक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा, नीलम, लहसुनिया, मकरंद, वज्रनख आदि। यदि यह नग तराश (cultured) दिए गए हैं, तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेट्स सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है।
कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें, नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह से राहु से होता है, तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी।
दूसरी बात यह कि किसी भी रत्न को पहनने के पहले उसे जागृत (Activate) अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है।
उदाहरण के लिए पुखराज को लेते हैं। पुखराज को मकोय (एक पौधा), सिसवन, दिथोहरी, अकवना, तुलसी एवं पलोर के पत्तों को पीस कर उसे उनके सामूहिक वजन के तीन गुना पानी में उबालिए। जब पानी लगभग सूख जाए तो उसे आग से नीचे उतारिए। आधे घंटे में उसके पेंदे में थोड़ा पानी एकत्र हो जाएगा। उस पानी को शुद्ध गाय के दूध में मिला दीजिए। जितना पानी उसके लगभग चौगुना दूध होना चाहिए। उस दूधयुक्त घोल में पुखराज को डाल दीजिए। हर तीन मिनट पर उसे किसी लकड़ी के चम्मच से बाहर निकाल कर तथा उसे फूंक मार कर सुखाइए और फिर उसी घोल में डालिए।
इस प्रकार आठ-दस बार करने से पुखराज नग के विकिरण के ऊपर लगा आवरण समाप्त हो जाता है तथा वह पुखराज सक्रिय हो जाता है।
इसी प्रकार प्रत्येक नग या रत्न को जागृत करने की अलग विधि है। रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इसे ही जागृत करना कहते हैं।
क्या सभी रत्न/स्टोन स्वयं सिद्ध होते हें..???
कई ज्योतिषगण बगैर पढ़े, बगैर डिर्गी लिए एक बार नहीं कई बार गोल्ड मैडल पाते हैं। बड़े ताज्जुब की बात है कि जिन्हें ज्योतिष का जरा भी ज्ञान नहीं है वे भी गोल्ड मैडलिस्ट बना दिए जाते है। कई तो करोड़ों मंत्रों की सिद्धि द्वारा रत्नों का चमत्कार करने का दावा भरते है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, रत्न तो स्वयं सिद्ध होते हैं। बस जरूरत है उन्हें कुंडली के अनुसार सही व्यक्तियों तक पहुँचाने की।
असल में रत्न स्वयं सिद्ध ही होते है। रत्नों में अपनी अलग रश्मियाँ होती है और कुशल ज्योतिष ही सही रत्न की जानकारी देकर पहनाए तो रत्न अपना चमत्कार आसानी से दिखा देते है। माणिक के साथ मोती, पुखराज के साथ मोती, माणिक मूँगा भी पहनकर असीम लाभ पाया जा सकता है।
असल में रत्न स्वयं सिद्ध ही होते है। रत्नों में अपनी अलग रश्मियाँ होती है और कुशल ज्योतिष ही सही रत्न की जानकारी देकर पहनाए तो रत्न अपना चमत्कार आसानी से दिखा देते है। माणिक के साथ मोती, पुखराज के साथ मोती, माणिक मूँगा भी पहनकर असीम लाभ पाया जा सकता है।
विशेष सावधानियां रत्न/स्टोन खरीदते समय पर---
ज्योतिष ग्रहों के आधार पर व जन्म समय की कुंडलीनुसार ही भाग्य का दर्शन कराता है एवं जातक की परेशानियों को कम करने की सलाह देता है। आज हर इन्सान परेशान है, कोई नोकरी से तो कोई व्यापार से। कोई कोर्ट-कचहरी से तो कोई संतान से। कोई प्रेम में पड़ कर चमत्कारिक ज्योतिषियों के चक्कर में फँस कर धन गँवाता है। ना तो वो किसी से शिकायत कर सकता है और ना किसी को बता सकता है। इस प्रकार न जानें कितने लोग फँस जाते हैं। न काम बनता है ना पैसा मिलता है।
आज हम देख रहे हैं ज्योतिष के नाम पर बडे़-बडे़ अनुष्ठान, हवन, पूजा-पाठ कराएँ जाते है। जबकि इस प्रकार धन व समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। कुछ ज्योतिषगण प्रेम विवाह, मूठ, करनी, चमत्कारी नग बताकर जनता को लूट रहे है। तो कोई वशीकरण करने का दावा भरते नजर आते है जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध है, क्योंकि पहले तो ऐसा होता ही नहीं है।
यदि कोई दावा भरता है तो ये अपराध है। कई तो ऐसे भी है जो जेल से छुडा़ने तक का दावा भरते है, तो कोई बीमारी के इलाज का भी दावा करते है। कुछ एक तो संतान, दुश्मन बाधा आदि दूर करने के दावा भरते है।
आज हम देख रहे हैं ज्योतिष के नाम पर बडे़-बडे़ अनुष्ठान, हवन, पूजा-पाठ कराएँ जाते है। जबकि इस प्रकार धन व समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। कुछ ज्योतिषगण प्रेम विवाह, मूठ, करनी, चमत्कारी नग बताकर जनता को लूट रहे है। तो कोई वशीकरण करने का दावा भरते नजर आते है जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध है, क्योंकि पहले तो ऐसा होता ही नहीं है।
यदि कोई दावा भरता है तो ये अपराध है। कई तो ऐसे भी है जो जेल से छुडा़ने तक का दावा भरते है, तो कोई बीमारी के इलाज का भी दावा करते है। कुछ एक तो संतान, दुश्मन बाधा आदि दूर करने के दावा भरते है।
नीलम के साथ मूँगा पहना जाए तो अनेक मुसीबातों में ड़ाल देता है। इसी प्रकार हीरे के साथ लहसुनिया पहना जाए तो निश्चित ही दुर्घटना कराएगा ही, साथ ही वैवाहिक जीवन में भी बाधा का कारण बनेगा। पन्ना-हीरा, पन्ना-नीलम पहन सकते है। फिर भी किसी कुशल ज्योतिष की ही सलाह लें तभी इन रत्नों के चमत्कार पा सकते है।
जैसे मेष व वृश्चिक राशि वालों को मूँगा पहनना चाहिए। लेकिन मूँगा पहनना आपको नुकसान भी कर सकता है अत: जब तक जन्म के समय मंगल की स्थिति ठीक न हो तब तक मूँगा नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल शुभ हो तो यह साहस, पराक्रम, उत्साह प्रशासनिक क्षेत्र, पुलिस सेना आदि में लाभकारी होता है।
वृषभ व तुला राशि वालों को हीरा या ओपल पहनना चाहिए। यदि जन्मपत्रिका में शुभ हो तो। इन रत्नों को पहनने से प्रेम में सफलता, कला के क्षेत्र में उन्नति, सौन्दर्य प्रसाधन के कार्यों में सफलता का कारक होने से आप सफल अवश्य होंगे।
मिथुन व कन्या राशि वाले पन्ना पहनें तो सेल्समैन के कार्य में, पत्रकारिता में, प्रकाशन में, व्यापार में सफलता दिलाता है।
सिंह राशि वालों को माणिक ऊर्जावान बनाता है व राजनीति, प्रशासनिक क्षेत्र, उच्च नौकरी के क्षेत्र में सफलता का कारक होता है।
कर्क राशि वालों को मोती मन की शांति देता है। साथ ही स्टेशनरी, दूध दही-छाछ, चाँदी के व्यवसाय में लाभकारी होता है।
मकर और कुंभ नीलम रत्न धारण कर सकते हैं, लेकिन दो राशियाँ होने सावधानी से पहनें।
धनु व मीन के लिए पुखराज या सुनहला लाभदायक होता है। यह भी प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है। वहीं न्याय से जुडे व्यक्ति भी इसे पहन सकते है। आपको सलाह है कि कोई भी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह बगैर कभी भी ना पहनें।
जैसे मेष व वृश्चिक राशि वालों को मूँगा पहनना चाहिए। लेकिन मूँगा पहनना आपको नुकसान भी कर सकता है अत: जब तक जन्म के समय मंगल की स्थिति ठीक न हो तब तक मूँगा नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल शुभ हो तो यह साहस, पराक्रम, उत्साह प्रशासनिक क्षेत्र, पुलिस सेना आदि में लाभकारी होता है।
वृषभ व तुला राशि वालों को हीरा या ओपल पहनना चाहिए। यदि जन्मपत्रिका में शुभ हो तो। इन रत्नों को पहनने से प्रेम में सफलता, कला के क्षेत्र में उन्नति, सौन्दर्य प्रसाधन के कार्यों में सफलता का कारक होने से आप सफल अवश्य होंगे।
मिथुन व कन्या राशि वाले पन्ना पहनें तो सेल्समैन के कार्य में, पत्रकारिता में, प्रकाशन में, व्यापार में सफलता दिलाता है।
सिंह राशि वालों को माणिक ऊर्जावान बनाता है व राजनीति, प्रशासनिक क्षेत्र, उच्च नौकरी के क्षेत्र में सफलता का कारक होता है।
कर्क राशि वालों को मोती मन की शांति देता है। साथ ही स्टेशनरी, दूध दही-छाछ, चाँदी के व्यवसाय में लाभकारी होता है।
मकर और कुंभ नीलम रत्न धारण कर सकते हैं, लेकिन दो राशियाँ होने सावधानी से पहनें।
धनु व मीन के लिए पुखराज या सुनहला लाभदायक होता है। यह भी प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है। वहीं न्याय से जुडे व्यक्ति भी इसे पहन सकते है। आपको सलाह है कि कोई भी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह बगैर कभी भी ना पहनें।
रत्न क्या हैं..??? आप कोनसा रत्न/स्टोन पहन सकते हैं..???
<-: रत्न-उपरत्न :-> | |||||||
मूंगा | |||||||
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हीरा | |||||||
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पन्ना | |||||||
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मोती | |||||||
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मणिक | |||||||
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पुखराज | |||||||
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नीलम | |||||||
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गोमेद | |||||||
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लहसुनिया | |||||||
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क्या संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता हें ???
पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। इसे पहनने वाला प्रतिष्ठा पाता है व उच्च पद तक आसीन हो सकता है। अपनी योग्यतानुसार रत्न पहनने से कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर कर राह आसान बना देते हैं। यूँ तो रत्न अधिकांश अलग-अलग व अलग-अलग धातुओं में पहने जाते है। लेकिन मेरे 20 वर्षों के अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक तालमेल में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश, आर्थिक उन्नति आदि में सफलता दिलाई।
जन्मपत्रिका के आधार पर व ग्रहों की स्थितिनुसार संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता है। संयुक्त रत्न में माणिक-पन्ना, पुखराज-माणिक, मोती-पुखराज, मोती-मूँगा, मूँगा-माणिक, मूँगा-पुखराज, पन्ना-नीलम, नीलम-हीरा, हीरा-पन्ना, माणिक-पुखराज-मूँगा, माणिक-पन्ना, मूँगा भी पहना जा सकता है।
क्या नहीं पहना जा सकता इसे भी जान लेना आवश्यक है। लहसुनियाँ-हीरा, मूँगा-नीलम, नीलम-माणिक। संयुक्त रत्न तभी पहने जाते है जब जन्मपत्रिका में देख व अनुकूल ग्रहों की अवस्था हो या दशा-अन्तर्दशा चल रही है। ऐसी स्थिति में श्रेष्ठ फलदायी होते हैं।
कभी-कभी व्यापार नहीं चल रहा हो, अच्छी सफलता नहीं मिल रही हो तो चार रत्न यथा पुखराज-मूँगा, माणिक व पन्ना पहनें तो सफलता मिलने लग जाती है। रत्नों की सफलता तभी मिलती है जब शुभ मुहूर्त में उसी के नक्षत्र में बने हो या जो ग्रह प्रभाव में तेज हो उसके नक्षत्र में बने हो व पहनने का भी उसी ग्रह के नक्षत्र में हो तब लाभ भी कई गुना बढ़ जाता है।
मेरे अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक तालमेल आदि में सफलता दिलाई।
क्या ग्रहों के रत्न पहने जा सकते हैं..????
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