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शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

ऐसे मनाएं नवरात्रि पर्व...जानिए नवरात्रि का प्रभाव,महत्त्व एवं इस अवसर पर किये जाने वाले उपाय----


ऐसे मनाएं नवरात्रि पर्व...जानिए नवरात्रि का प्रभाव,महत्त्व एवं इस अवसर पर किये जाने वाले उपाय----

हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। 

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-09024390067 ) के अनुसार इस वर्ष 2012 के शारदीय नवरात्रे 16 अक्टूबर, (मंगलवार )आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें. इस दिन स्वाती नक्षत्र, विष्कुम्भ योग होगा. प्रतिपदा तिथि के दिन शारदिय नवरात्रों का पहला नवरात्रा होगा. माता पर श्रद्धा व विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह दिन विशेष रहेगा. शारदीय नवरात्रों का उपवास करने वाले इस दिन से पूरे नौ दिन का उपवास विधि -विधान के अनुसार रख, पुन्य प्राप्त करेगें.इन नवरात्री का समापन 23 अक्तूबर,2012 (मंगलवार) को होगा..24 अक्तूबर(बुधवार) को दशहरा/विजयादशमी मनाई जाएगी...
नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है।
संपूर्ण ब्रह्मण्ड का संचालन करने वाली जो शक्ति है। उस शक्ति को शास्त्रों ने आद्या शक्ति की संज्ञा दी है। देवी सुक्त के अनुसार-

या देवी सर्व भूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।

अर्थात जो देवी अग्नि,पृथ्वी,वायु,जल,आकाश और समस्त प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित है, उस शक्ति को नमस्कार, नमस्कार, बारबार मेरा नमस्कार है। इस शक्ति को प्रसन्न करने के लिए नवरात्र काल का अपना विशेष महत्व है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु नवरात्र में निम्न बातो का विशेष ध्यान रखना चाहिए। नवरात्र  में साधक को व्रत रखकर माता दुर्गा की उपासना करनी चाहिए। 

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार माता दुर्गाकी उपासना से सभी सांसारिक कष्टो से मुक्ति सहज ही हो जाती है। नवरात्र शब्द दो शब्दों नव़ + रात्र से मिलकर बना है। जिसका अर्थ नौ दिव्य अहोरात्र से है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्री का पर्व वर्ष में चार बार आता है। ये चार नवरात्रीयां बासंतिक,आषढीय,शारदीय व माघीय है जिसमें से दो नवरात्री शारदीय व बासंतिक जनमानस में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसी कारण शेष दो नवरात्री आषाढी व माघीय को गुप्त नवरात्री कहा जाता है। कल्कि पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्र जनसामान्य के पुजन हेतु उतम मानी गई है। गुप्त नवरात्र साधको के लिए उतम मानी है। शारदीय नवरात्र राजवंश के लिए उतम मानी गई है।  भगवान श्री राम ने शारदीय नवरात्र का विधि विधान से पुजन कर लंका विजय प्राप्त की थी। लंकिन समय चक्र के साथ राजपरिवार प्रथा बंद होकर अब आमजन भी शारदीय नवरात्र को अति उत्साह से मनाता आ रहा है एवं माता दुर्गा को प्रसन्न करने के अनेक उपाय भी करता आ रहा है।
उपासना और सिद्धियों के लिये दिन से अधिक रात्रिंयों को महत्व दिया जाता है. हिन्दू के अधिकतर पर्व रात्रियों में ही मनाये जाते है. रात्रि में मनाये जाने वाले पर्वों में दिपावली, होलिका दशहरा आदि आते है. शिवरात्रि और नवरात्रे भी इनमें से कुछ एक हे. 
शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्घा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी नवरात्रि सुख और समृद्घि देती है। सनातन संस्कृति में नवरात्रि की उपासना से जीव का कल्याण होता है। भगवती राजराजेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होगा, घर-घर घट-कलश स्थापित किए जाते हैं।  
स्त्री हो या पुरुष, सबको नवरात्र करना चाहिये । यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि ( पति – पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राह्मण ) द्वारा करायें ।  नवरात्र नौ रात्रि पूर्ण होनेसे पूर्ण होता है । इसलिये यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक दिन व्रत करे और व्रतमें भी उपवास, अयाचित, नक्त या एकभुक्त – जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर ले  
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार  नवरात्रि में घट स्थापना के बाद संकल्प लेकर पुजा स्थान को गोबर से लेप लीपकर वहां एक बाजट पर लाल कपडा बिछाकर उस पर माता दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर पंचोपचार पुजा कर धुप-दीप एवं अगरबती जलाए। फिर आसन पर बैठकर रूद्राक्ष की माला सें किसी एक मंत्र का यथासंभव जाप करे। 
पुजन काल एवं नवरात्रि में विशेष ध्यान  रखने योग्य बाते-
1- दुर्गा पुजन में लाल रंग के फुलो का उपयोग अवश्य करे। कभी भी तुलसी,आंवला,आक एवं मदार के फुलों का प्रयोग नही करे। दुर्वा भी नही चढाए।
2- पुजन काल में लाल रंग के आसन का प्रयोग करे। यदि लाल रंग का उनी आसन मिल जाए तो उतम अन्यथा लाल रंग काल कंबल प्रयोग कर सकते है।
3- पुजा करते समय लाल रंग के वस्त्र पहने एवं कुंकुंम का तिलक लगाए।
4- नवरात्र काल में दुर्गा के नाम की ज्योति अवश्य जलाए। अखण्ड ज्योत जला सकते है तो उतम है। अन्यथा सुबह शाम ज्योत अवश्य जलाए।
5- नवरात्र काल में नौ दिन व्रत कर सके तो उतम अन्यथा प्रथम नवरात्र चतुर्थ नवरात्र एवं होमाष्टमी के दिन उपवास अवश्य करे।
6- नवरात्र काल में नव कन्याओं को अन्तिम नवरात्र को भोजन अवश्य कराए। नव कन्याओं को नव दुर्गा को मान कर पुजन करे।
7- नवरात्र काल में दुर्गा सप्तशती का एक बार पाठ पुर्ण मनोयोग से अवश्य करना चाहिए।

नवरात्री में जाप करने हेतु विशेष मंत्र-----
1 ओम दुं दुर्गायै नमः
2 ऐं ह्मीं क्लीं चामुंडाये विच्चै
3 ह्मीं श्रीं क्लीं दुं दुर्गायै नमः
4 ह्मीं दुं दुर्गायै नमः

###ग्रह दोष निवारण हेतु नवदुर्गा के भिन्न भिन्न रूपों की पुजा करने से अलग-अलग ग्रहों के दोष का निवारण होता है। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार कोई ग्रह जब दोष कारक हो तो-
---- सूर्य दोष कारक होने पर नवदुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दस महा विधाओं में से मातंगी महाविधा की उपासना लाभदायक करनी है।
----चंद्र दोष कारक होने पर नवदुर्गा के कुष्मांडा के स्वरूप की पुजा करनी चाहिए।दश महाविधाओं में भुवनेश्वरी की उपासना चंद्रकृत दोषो को दुर करत़ी ळें
---मंगलदोष कारक होने पर नवदुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविधाओं में बगलामुखी की उपासना मंगलकृत दोषों को दुर करती है।
-----बुध दोष कारक होने पर नवदुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविधाओं में षोडशी की उपासना बुध की शांति करती है।
----वृहस्पति दोष कारक होने पर नवदुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। दश महाविधाओं में तारा महाविद्या की उपासना गुरू ग्रह के दोषो को दुर करती है।
-----शुक्र दोष कारक होने पर नवदुर्गा के सिद्धीदात्री स्वरूप की पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में कमला महाविद्या की उपासना शुक्र दोषो को कम करती है।
----शनि दोषकारक होने पर नवदुर्गा के कालरात्रि स्वरूप पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में काली महाविद्या की उपासना शनि दोष का शमन करती है।
-----राहु दोषकारक होने पर नवदुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप पुजा करनी चाहिए। दश महाविद्याओं में छिन्नमस्ता की उपासना लाभदायक रहती है।
------ केतु दोष कारक होने पर नवदुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पुजा करने से दोष दुर होता है। दश महाविद्याओं में धुमावती की उपासना केतु दोष नाशक है।
  इस प्रकार आप नवरात्र में दुर्गा पुजा, उसके स्वरूप की पुजा कर सुख, शांति एवं समृद्धि प्राप्त कर  सकते है।                                     

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार इस नवरात्री के पावन नौ दिनों के लिए यहाँ पर  दिव्य मंत्र दिए जा रहे हैं, जिनके विधिवत परायण करने से स्वयं के नाना प्रकार के कार्य व सामूहिक रूप से दूसरों के कार्य पूर्ण होते हैं। इन मंत्रों को नौ दिनों में अवश्य जाप करें। इनसे यश, सुख, समृद्धि, पराक्रम, वैभव, बुद्धि, ज्ञान, सेहत, आयु, विद्या, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य सभी की प्राप्ति होती है। विपत्तियों का नाश होगा। 

1. विपत्ति-नाश के लिए :------ 
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे। 
सर्वस्पापहरे देव‍ि नारायणि नमोस्तुते।। 

2. भय नाश के लिए :----- 
सर्वस्वरूपे सर्वेश सर्वशक्तिसमन्विते। 
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।। 

3. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए :---- 
नमेभ्य: सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे। 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।। 

4. मोक्ष की प्राप्ति के लिए :---- 
त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या।
विश्वस्य बीजं परमासि माया। 
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भूवि मुक्ति हेतु:।। 

5. हर प्रकार के ‍कल्याण के लिए :------
सर्वमंगल्यमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।। 

6. धन, पुत्रादि प्राप्ति के लिए : -----
सर्वबाधाविनिर्मुक्तो-धनधान्यसुतान्वित: 
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।। 

7. रक्षा पाने के लिए :----- 
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खंडे न चाम्बिके। 
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।। 

8. बाधा व शांति के लिए :----- 
सर्वबाधाप्रमशन: त्रैलोक्याखिलेश्वरि। 
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्धैरिविनाशनम्।। 

9. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए : ------
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। 
तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।

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