छूना हें आभिमान से ...आसमान...
(स्वतंत्रता दिवस पर विशेष कविता)----
(पंडित दयानंद शास्त्री"अंजाना")
ज्ञानियों के ज्ञान से ना मूर्खों के मान से....
हम रहें आनंद में बस, बांसुरी की तान से....
पढ़ चुकें जो पुस्तकें पर पढ़ सकें, न आपना मन ह्रदय..
वो मगन होते रहें झूठें, निरे मान सम्मान से.....
देखते हें इश्वर अपने भक्त को यूँ हमेशा.....
जिनकी धरा पर नित्य पड़ती हें, दृष्टी आसमान से.....
जान लो बस नित्य सत्य हें, एक दिन चलेंगे आगे विश्व से ...
जितना हें अगर विश्व को, छुट लो अभिमानी भ्रष्टाचार से...
(पंडित दयानंद शास्त्री"अंजाना")
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