दस्तूर.. प्यार में साथी का...!!!!
(पंडित दयानंद शास्त्री"अंजाना")
पहली ही नजर में वह वह दिल को छू गयी....
मुझे पता ही नहीं चला की कब दिल उसका हो गया......
झूठे ही सही हम खुद को ही समझाते रहे...
अंजान भी बने रहें हम,कभी नादान भी बने रहें....
आँखें खुली हमारी जब, हमारी ही गलियों में ..
किस्सा हमारे प्यार का चर्चा ऐ आम हो गया..."अंजाना "
जुबान से ना सुनाई, कभी दिल की कहानी...
अपनी ही कही, कभी दिल की ना मानी...
अपने दिल पर यकीन जब हमको आया...."अंजाना"
तब तक हमें भूलकर वो किसी और का हो गया...
भुलाना आसाँ नहीं हें उसे दिल से उतना ....
हमने खुद ही कर लिया फासला,आसमान जितना...
प्यार में दिल को रुलाने का ...
दस्तूर/रिवाज...सचमूच पुराना हो गया.....
( पंडित दयानंद शास्त्री"अंजाना")
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