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मंगलवार, अक्टूबर 02, 2012

आइये जाने बृहस्पति ग्रह का पुराणों व ज्योतिष शास्त्र में महत्त्व,प्रभाव और इसके उपाय -----


 आइये जाने बृहस्पति ग्रह का पुराणों व ज्योतिष शास्त्र में महत्त्व,प्रभाव और इसके उपाय -----

नवग्रहों में बृहस्पति को गुरु की उपाधि प्राप्त है। मानव जीवन पर बृहस्पति का महत्वपूर्ण प्रभाव है। यह हर तरह की आपदा-विपदाओं से धरती और मानव की रक्षा करने वाला ग्रह है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है। कहते हैं कि हरि रुठे तो गुरु ठौर है किंतु गुरु रुठे तो...कोई ठौर नहीं।
पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार देव गुरु बृहस्पति जी को नीति और धर्म तथा विद्या का महान गुरु माना जाता है यह सत्वगुण प्रधान, दीर्घ और स्थूल शरीर वाले, कफ प्रकृति, पीला वर्ण, गोल आकृति, आकाष तत्व प्रधान, बड़े पेट वाले, पूर्वाेत्तर दिशा के स्वामी, बातचीत मे गम्भीरता लिये, स्थिर प्रकृति वाले है यह मीठे रस और हेमन्त ऋतु के अधिष्ठाता है। धनु तथा मीन राशियों के स्वामी भी है यह कर्क राषि के पांच-05 अंशों पर परम उच्च तथा मकर राषि के 05अंश परम नीचे होते हैं। यह एक राशि मे लगभग 01 वर्ष 01 माह मे पुरा चक्कर लगा लेते हैं।

बृहस्पति  की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्तांत----
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि का विवाह स्मृति से हुआ जिनसे सिनीवाली ,कुहू,राका ,अनुमति नाम कि कन्याएं एवम उतथ्य व जीव नामक पुत्र हुए |जीव बचपन से ही शांत एवम जितेन्द्रिय प्रकृति के थे | वे समस्त शास्त्रों तथा नीति के ज्ञाता हुए |अंगिरानंदन जीव ने प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग कि स्थापना कि तथा शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया | महादेव ने उनकी आराधना एवम तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा – “ हे द्विज श्रेष्ठ ! तुमने बृहत तप किया है अतः तुम बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हो कर देवताओं के गुरु बनों और उनका धर्म व नीति के अनुसार मार्गदर्शन करो |” इस प्रकार महादेव ने बृहस्पति को देवगुरु पद और नवग्रह मंडल में स्थान प्रदान किया | तभी से जीव, बृहस्पति और गुरु के नाम से विख्यात हुए | देवगुरु कि शुभा,तारा और ममता तीन पत्नियां हैं | उनकी तीसरी पत्नी ममता से भरद्वाज एवम कच नामक दो पुत्र हुए |

पुराणों में बृहस्पति का स्वरूप एवम प्रकृति------

पुराणों के अनुसार बृहस्पति पीत वर्ण के ,चतुर्भुज ,रुद्राक्ष की माला – कमंडल व वरमुद्रा धारण करने वाले हैं| मत्स्य व स्कन्द पुराण में बृहस्पति को बृहत्काय,शांत,जितेन्द्रिय,बुद्धिमान,विद्वान मधुर वाणी से युक्त ,नीति कुशल,वेदों के ज्ञाता गुणवान,रूपवान,एवम निर्मल अंतःकरण के कहा गया है |

ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति का स्वरूप एवम प्रकृति----

फलदीपिका ,बृहज्जातक ,सर्वार्थ चिंतामणि ,जातका भरणम् इत्यादि ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति , गौर  वर्ण के , विशाल देह के ,कफ प्रधान ,उत्तम बुद्धि व गंभीर वाणी से युक्त,कपिल वर्ण के केश वाले ,बड़े पेट वाले , उदार ,पीत नेत्रों वाले हैं |

बृहस्पति का रथ एवम गति------

पुराणों के अनुसार बृहस्पति का रथ स्वर्णिम है जिसमें पीत रंग के आठ दिव्य अश्व जुते हुए हैं | बृहस्पति लगभग एक वर्ष में एक राशि का भोग कर लेते हैं | राशि चक्र में धनु व मीन राशियों पर इनका अधिकार कहा गया है |

वैज्ञानिक परिचय-----

पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल  का सबसे बड़ा ग्रह है| यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह कई  संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। यह चन्द्रमाऔर शुक्र के बाद तीसरा सबसे अधिक चमकदार ग्रह  है |बृहस्पति मुख्य रूप से गैसों और तरल पदार्थों से बना है। यह चारो गैसीय ग्रहों में बड़ा होने के साथ साथ १,४२,९८४ कि.मी .व्यास के साथ  बड़ा ग्रह है। सौरमंडल में सूर्य के आकार के बाद बृहस्पति का ही नम्बर आता है। पृथ्‍वी से बहुत दूर स्थित इस ग्रह का व्यास लगभग डेढ़ लाख किलोमीटर और सूर्य से इसकी दूरी लगभग 778000000 किलोमीटर मानी गई है। 
यह 13 कि.मी. प्रति सेकंड की रफ्तार से सूर्य के गिर्द 11 वर्ष में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपनी धूरी पर 10 घंटे में ही घूम जाता है। लगभग 1300 धरतियों को इस पर रखा जा सकता है। जिस तरह सूर्य उदय और अस्त होता है, उसी तरह बृहस्पति जब भी अस्त होता है तो 30 दिन बाद पुन: उदित होता है। उदित होने के बाद 128 दिनों तक सीधे अपने पथ पर चलता है। सही रास्ते पर अर्थात मार्गी होने के बाद यह पुन: 128 दिनों तक परिक्रमा करता रहता है एवं इसके पश्चात्य पुन: अस्त हो जाता है। गुरुत्व शक्ति पृथ्वी से 318 गुना ज्यादा।
पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार बृहस्पति एक मात्र ग्रह  है जिसका सूर्य के साथ द्रव्यमान केंद्र सूर्य के आयतन से बाहर स्थित है | बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी ७७ करोड़ ८० लाख कि .मी.  है और यह सूर्य का एक पूरा चक्कर हर ११.८६ वर्ष में लगाता है | जितने समय में बृहस्पति सूर्य के पाँच चक्कर लगाता है उतने ही समय में शनि सूर्य के दो चक्कर लगाता है | इसकी अंडाकार कक्षा पृथ्वी कि तुलना में १.३१° झुकी हुई है बृहस्पति का घूर्णन सौरमंडल के सभी ग्रहों में सबसे तेज है,यह अपने अक्ष पर एक घूर्णन १० घंटे से थोड़े कम समय में पूरा करता है,जिससे भूमध्यरेखीय उभार बनता है जो भू-आधारित दूरदर्शी  से आसानी से दिखाई देता है | बृहस्पति के ६६ प्राकृतिक उपग्रह है , इनमें से १० कि.मी. से कम व्यास के ५० उपग्रह है और इन सभी को १९७५ के बाद खोजा गया है | चार सबसे बड़े चन्द्रमा आयो , युरोपा , गैनिमीड और कैलिस्टो , गैलिलीयन चन्द्रमा  के नाम से जाने जाते है |

ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति-----

पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में गुरु को सर्वाधिक  शुभ ग्रह माना गया है |यह धनु और मीन राशियों का स्वामी है |यह कर्क राशि में उच्च का तथा मकर में नीच का माना जाता है | धनु इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |बृहस्पति अपने स्थान से पांचवें ,सातवें और नवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को परम शुभकारक कहा गया है |जनम कुंडली में गुरु दूसरे ,पांचवें ,नवें ,दसवें और ग्यारहवें भाव का कारक होता है |गुरु की सूर्य ,चन्द्र ,मंगल से मैत्री ,शनि से समता और बुध व शुक्र से शत्रुता है |यह स्व ,मूल त्रिकोण व उच्च,मित्र  राशि –नवांश  में ,गुरूवार में ,वर्गोत्तम नवमांश में,उत्तरायण में ,दिन और रात के मध्य में ,जन्मकुंडली के केन्द्र विशेषकर लग्न में बलवान व शुभकारक होता है |बृहस्पति को गुरु भी कहा जाता है I बृहस्पति ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है I यह पीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है I जिन लोगों की कुंडली में गुरु का प्रभाव अधिक होता है वे अध्यापक, वकील, जज, पंडित, प्रकांड विद्वान् या ज्योतिषाचार्य हो सकते हैं I सोने का काम करने वाले सुनार, किताबों की दुकान, आयुर्वेदिक औषधालय, पुस्तकालय, प्रिंटिंग मशीन आदि पर गुरु का अधिकार होता है I गुरु एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है तथा यह जहाँ भी बैठता है उस स्थान को पवित्र कर देता है I
पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार धर्म स्थान में कार्यरत प्रमुख व्यक्ति इसी से संचालित होते हैं I सभी तीर्थस्थल इसी ग्रह के अंतर्गत आते हैं I पूर्ण रूप से ब्राह्मण धर्म का पालन करने वाले पंडित, न्यायपालिका के अंतर्गत आने वाले सर्वोच्च पद यानी न्यायाधीश, सरकारी वकील, साधू संतों में प्रमुख, कागज़ का व्यापार करने वाले व्यापारी तथा गजेटेड अधिकारी गुरु द्वारा ही संचालित होते हैं I
गुरु से प्रभावित व्यक्ति हृष्ट पुष्ट या थोड़े मोटे हो सकते हैं I इनका शरीर विशाल होता है I ये झूठ आसानी से नहीं बोल सकते अपितु बात को घुमा फिर कर बोलते हैं I इनका क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण होता है I यह लोग तामसिक प्रवृत्ति के नहीं होते I इनका चरित्र तथा आचरण पवित्र तथा सहज होया है I ये झूठी प्रशंसा, दिखावे से दूर रहने वाले तथा धार्मिक कार्यों में रूचि रखने वाले होते हैं Iयही कारण है कि गुरु जिस ग्रह को देखेगा वह भी बलवान हो जाएगा I
पाप ग्रह के साथ होने पर वकील जो कि झूठ की राह पर ही चलता है, भ्रष्ट नेता, सोने का स्मगलर, रिश्वतखोर अधिकारी, तांत्रिक बना सकता है

कारकत्व----

 प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथोंके अनुसार गुरु बुद्धि ,ज्ञान ,स्मृति,शिक्षा, राजनीति ,मंत्री पद ,धर्म, नीति,सुख समृद्धि,धन संपत्ति ,अध्यात्म,स्वर्ण,संतान ,पीत वर्ण के सभी पदार्थ,मोम,चर्बी,घी,तीर्थ स्थल ,वाक् शक्ति ,पुरोहिताई ,ईशान दिशा ,ब्राह्मण जाति ,वृद्धावस्था,मधुर रस,हेमंत ऋतु ,भण्डार घर,उदारता, दान – पुण्य ,न्याय,उच्चाभिलाषा , सत्व गुण , बैंक ,शहद ,फल ,पुस्तकालय ,प्रकाशन इत्यादि का कारक है |

 रोग------  

जनम कुंडली में  गुरु अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आठवें -बारहवें  भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत  या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो ऊँचाई से पतन , शरीर में चर्बी की वृद्धि ,कफ विकार ,मूर्च्छा ,हर्निया,कान के रोग ,स्मृति विकार , जिगर के रोग ,मानसिक तनाव , रक्त धमनी से सम्बंधित रोग करता है |

फल देने का समय-----

गुरु अपना शुभाशुभ फल  १६ से २२  एवम ४० वर्ष कि आयु में ,अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | प्रौढ़ावस्था पर भी  इस का अधिकार कहा गया है |

अशुभ के लक्षण :------ सिर पर चोटी के स्थान से बाल उड़ जाते हैं। गले में व्यक्ति माला पहनने की आदत डाल लेता है। सोना खो जाए या चोरी हो जाए। बिना कारण शिक्षा रुक जाए। व्यक्ति के संबंध में व्यर्थ की अफवाहें उड़ाई जाती हैं। आँखों में तकलीफ होना, मकान और मशीनों की खराबी, अनावश्यक दुश्मन पैदा होना, धोखा होना, साँप के सपने। साँस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द। 2, 5, 9, 12वें भाव में बृहस्पति के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो बृहस्पति मंदा होता है।

शुभ के लक्षण:-------- व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता। उनकी सच्चाई के लिए वह प्रसिद्ध होता है। आँखों में चमक और चेहरे पर तेज होता है। अपने ज्ञान के बल पर दुनिया को झुकाने की ताकत रखने वाले ऐसे व्यक्ति के प्रशंसक और हितैषी बहुत होते हैं। यदि बृहस्पति उसकी उच्च राशि के अलावा 2, 5, 9, 12 में हो तो शुभ।
बृहस्पति का राशि फल-----

जन्म कुंडली में गुरु का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :-----

मेष में – गुरु हो तो जातक तर्क वितर्क करने वाला , किसी से न दबने वाला ,सात्विक,धनी,कार्य क्षेत्र में विख्यात,क्षमाशील ,पुत्रवान,बलवान,प्रतिभाशाली,तेजस्वी,अधिक शत्रु वाला,बहु व्ययी ,दंडनायक व तीक्ष्ण स्वभाव का होता है |
वृष   में  गुरु   हो तो जातक वस्त्र अलंकार प्रेमी ,विशाल देह वाला ,देव –ब्राह्मण –गौ  भक्त, प्रचारक ,सौभाग्यशाली,अपनी स्त्री में ही आसक्त ,सुन्दर कृषि व गौ धन युक्त, वैद्यक क्रिया में कुशल ,मनोहर वाणी-बुद्धि व गुणों से युक्त ,विनम्र तथा नीतिकुशल होता है
मिथुन में गुरु  हो तो जातक ,विज्ञान विशारद ,बुद्धिमान,सुनयनी,वक्ता,सरल,निपुण,धर्मात्मा ,मान्य ,गुरुजनों व बंधुओं से सत्कृत होता है |
कर्क में गुरु  हो तो जातक विद्वान,सुरूप देह युक्त ,ज्ञानवान ,धार्मिक, सत्य स्वभाव वाला,यशस्वी ,अन्न संग्रही ,कोषाध्यक्ष,स्थिर पुत्र वाला,संसार में पूज्य ,विशिष्ट कर्मा तथा मित्रों में आसक्त होता है |
सिंह में गुरु  हो तो जातक स्थिर शत्रुता वाला ,धीर ,विद्वान,शिष्ट परिजनों से युक्त,राजा या उसके तुल्य,पुरुषार्थी,सभा में लक्ष्य ,क्रोध से समस्त शत्रुओं को जीतने वाला ,सुदृढ़ शरीर का ,वन-पर्वत आदि के भ्रमण में रूचि रखने वाला होता है |
कन्या में गुरु  हो तो जातक मेधावी, धार्मिक ,कार्यकुशल ,गंध –पुष्प-वस्त्र प्रेमी ,कार्यों में स्थिर, शास्त्रज्ञान व शिल्प कार्य से धनी  दानी ,सुशील चतुर ,अनेक भाषाओं का ज्ञाता तथा धनी    होता है |
तुला मे गुरु  हो तो जातक मेधावी ,पुत्रवान,विदेश भ्रमण से धनी विनीत ,आभूषण प्रिय ,नृत्य व नाटक से धन संग्रह करने वाला ,सुन्दर ,अपने सह व्यापारियों में बड़ा,पंडित,देव अतिथि का पूजन करने वाला होता है |
वृश्चिक में गुरु  हो तो जातक अधिक शास्त्रों में चतुर , क्षमाशील,  नृपति, ग्रंथों का भाष्य करने वाला ,निपुण ,देव मंदिर व नगर में कार्य करने वाला , सद्स्त्रीवान,अल्प पुत्र वाला ,रोग से पीड़ित ,अधिक श्रम करने वाला ,क्रोधी, धर्म में पाखण्ड करने वाला व निंद्य आचरण वाला  होता है |
धनु में गुरु  हो तो जातक आचार्य ,स्थिर धनी ,दाता , मित्रों का शुभ करने वाला ,परोपकारी ,शास्त्र में तत्पर ,मंत्री या सचिव ,अनेक देशों का भ्रमण करने वाला तथा तीर्थ सेवन में रूचि रखने वाला होता है |
मकर में गुरु  हो तो जातक अल्प बलि ,अधिक मेहनत करने वाला ,क्लेश धारक,नीच आचरण करने वाला ,मूर्ख ,निर्धन , दूसरों की नौकरी करने वाला , दया –धर्म –प्रेम –पवित्रता –स्व बन्धु व मंगल से रहित ,दुर्बल देह वाला ,डरपोक,प्रवासी,व विषाद युक्त होता है |
कुम्भ में गुरु  हो तो जातक चुगलखोर ,असाधु ,निंद्य कार्यों में तत्पर ,नीच जन सेवी ,पापी,लोभी ,रोगी ,अपने वचनों के दोष से अपने धन का नाशक ,बुद्धिहीन व गुरु की स्त्री में आसक्त होता है |
मीन में गुरु   हो तो जातक वेदार्थ शास्त्र वेत्ता ,मित्र व सज्जनों द्वारा पूजनीय ,राज मंत्री ,प्रशंसा प्राप्त करने वाला ,धनी ,निडर ,गर्वीला, स्थिर कार्यारम्भ करने वाला ,शांतिप्रिय ,विख्यात ,नीति व व्यवहार को जानने वाला होता है |
(गुरु पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है| )

गुरु का सामान्य  दशा फल-----

पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार जन्म कुंडली में गुरु  स्व ,मित्र ,उच्च राशि -नवांश का ,शुभ भावाधिपति ,षड्बली ,शुभ युक्त -दृष्ट हो तो गुरु की शुभ दशा में,यश प्राप्ति,वाणी में प्रभाव व अधिकार, बुध्धि कि प्रखरता,विद्या लाभ,परीक्षाओं में सफलता,सुख-सौभाग्य ,राज कृपा ,मनोरथ सिध्धि ,दान पुण्य –तीर्थ भ्रमण आदि धार्मिक कार्यों में रूचि ,प्रभुत्व प्राप्ति, विवाह ,संतान सुख , स्वर्ण आभूषण की प्राप्ति ,सत्संग सात्विक गुणों की वृद्धि,मिष्टान भोजन की प्राप्ति  ,व्यापार में लाभ ,स्वाध्याय में रूचि,पद प्राप्ति व पदोन्नति होती है | अध्यापन ,न्याय सेवा ,बैंकिंग ,प्रबंधन व धार्मिक प्रवचनों से सम्बंधित क्षेत्रों में सफलता मिलती है |राजनीतिक व प्रशासनिक पद की प्राप्ति होती है |ईशान दिशा से लाभ होता है | शहद ,तगर ,जटामांसी ,मोम , घी व पीले रंग के पदार्थों के व्यापार में लाभ होता है |  जिस भाव का स्वामी गुरु होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में सफलता व लाभ होता है |
पंडित दयानन्द शास्त्री(मोब.-09024390067 ) के अनुसार यदि गुरु  अस्त ,नीच शत्रु राशि नवांश का ,षड्बल विहीन ,अशुभभावाधिपति  पाप युक्त दृष्ट हो तो  गुरु दशा में शरीर में सूजन ,शोक ,कर्ण रोग ,गठिया,राजा से भय ,स्थान हानि ,अपवित्रता ,विद्या प्राप्ति में बाधा ,स्मरणशक्ति में कमी ,गुरु जनों व ब्राह्मणों से द्वेष ,गुरु के कारकत्व वाले पदार्थों से हानि ,संतान प्राप्ति में बाधा या कष्ट ,मान हानि ,संचित धन की हानि होती है |  जिस भाव का स्वामी गुरु होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में असफलता व हानि होती है |

जन्मकालीन ग्रहों से बृहस्पति का गोचर------

1. सूर्य :- जन्मकालीन सूर्य से जब बृहस्पति गोचर करते हैं तो शुभ अशुभ फल का निर्धारण इस आधार पर होगा कि बृहस्पति चन्द्र लग्न के स्वामी का मित्र है अथवा शत्रु। यदि चन्द्रमा लग्न का स्वामी बृहस्पति का मित्र होगा तो परिणाम शुभ होंगे यथा सम्मान, भभ, धन-धान्य की वृद्घि, सुख-समृद्घि आदि परन्तु यदि चन्द्र राशि के स्वामी और बृहस्पति शत्रु होंगे तो परिणाम अशुभ होंगे यथा ह्वदय रोग, हानि, उच्चा वर्ग का रोग, स्थान परिवर्तन आदि।
2. चन्द्रमा:- जन्मकालीन चन्द्रमा पर से बृहस्पति का गोचर शुभ-परिणाम नहीं देता है। यदि जन्मकालीन चन्द्रमा 2,3,6,7,10 अथवा 11 राशियों का स्वामी हो तो अशुभ परिणामों में वृद्घि होती है। धन हानि के कारण कर्ज बढ़ता है साथ ही व्यवसाय की वृद्घि भी रूक जाती है। मानसिक तनाव अधिक हो जाता है। जन्म स्थान से दूर जाना प़डता है।
3. मंगल:- जन्मकालीन मंगल से बृहस्पति का गोचर प्राय: शुभ-फल प्रदान करता है। इस स्थिति में आत्मविश्वास एवं उत्साह में वृद्घि होती है। उच्चाधिकारी प्रसन्न रहते हैं। विचारोे में सात्विकता आती है। कार्य के जोश में व्यक्ति स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखता जिस कारण स्वास्थ्य संबंधी खास तौर पर रक्त विकार की संभावना रहती है। भाईयों से भी विवाद होते रहते हैं।
4. बुध:- जन्मकालीन बुध पर से बृहस्पति का गोचर बुध की स्थितिानुसार फल देता है। यदि बुध पर किसी अन्य ग्रह का प्रभाव नहीं होता है तो परिणाम शुभ होते हैं। और व्यक्ति की प्रतिभा खुल कर सामने आती है। अपनी प्रतिभा के बल पर व्यक्ति धन भी कमाता है। यदि बुध पर ऎसे ग्रहों का प्रभाव हो जो बृहस्पति के मित्र हैं तब भी परिणाम शुभ होंगे। परन्तु बुध यदि ऎसे ग्रहों के प्रभाव में हों जो बृहस्पति के शत्रु हैं तो अशुभ परिणाम अधिक होंगे।
5. बृहस्पति:- जन्मकालीन बृहस्पति पर से बृहस्पति के गोचर के परिणाम जन्मपत्रिका में बृहस्पति की स्थिति के आधार पर होंगे। यदि जन्म पत्रिका में बृहस्पति 3,6,8,12 भाव में शत्रु अथवा नीच राशि में स्थित हों तो अशुभ परिणाम अधिक रहेंगे जैसे धन हानि, उच्चााधिकारियों का रोष, संतान से कष्ट आदि परंतु यदि जन्मपत्रिका में बृहस्पति की स्थिति शुीा हों तो इन विषयों में शुभ फल मिलेंगे।
6. शुक्र :- जन्मकालीन शुक्र से बृहस्पति के गोचर के परिणाम जन्मपत्रिका में शुक्र की स्थिति पर आधारित होंगे। यदि जन्म पत्रिका में शुक्र बलवान होकर 2,4,5,7,9 अथवा 12 भाव में स्थित हों तो परिणाम शुभ होंगे परन्तु अन्य भावों में स्थित शुक्र पर से बृहस्पति का गोचर अशुभ परिणाम देगा। ऎसी स्थिति में अपने आसपास के लोगों से शत्रुता बढ़ती है। पत्नी को कष्ट होता है तथा व्यापार में कष्ट का दौर रहता है।
7. शनि :-  जन्मकालीन शनि से बृहस्पति का गोचर शनि की जन्मपत्रिका में स्थिति के आधार पर फल प्रदान करेगा। यदि शुभ शनि-1, 2, 3, 6, 7, 8, 10 अथवा 11वें भाव में होंगे तो भूमि संबंधी लाभ होंगे तथा मान में वृद्धि होगी अन्यथा गुरू का गोचर साधारण रहेगा और परिणाम नहीं मिलेंगे।

गोचर में बृहस्पति का प्रभाव -----

-----जन्म या नाम राशि से 2,5,7,9, व 11 वें स्थान पर गुरु   शुभ फल देता है |शेष स्थानों पर गुरु का भ्रमण अशुभ कारक  होता है |
-----जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर गुरु  का गोचर मान हानि ,व्यवसाय में बाधा,राजभय ,मानसिक व्यथा ,कार्यों में विलम्ब,सुख में कमी तथा भारी व्यय से आर्थिक स्थिति को कमजोर करता है |
------दूसरे स्थान पर गुरु  का गोचर धन लाभ ,परिवार में सुख समृद्धि, विवाह ,संतान प्राप्ति , शत्रु को हानि ,दान व परोपकार में रूचि ,चल संपत्ति में वृद्धि करता है |
--------तीसरे स्थान पर गुरु  का गोचर शरीर पीड़ा ,सम्बन्धियों से झगडा ,राज्य से भय ,मित्र का अनिष्ट ,यात्रा में हानि तथा व्यवसाय में बाधा देता  है |
------चौथे स्थान पर  गुरु का गोचर मानसिक अशांति ,शत्रु से कष्ट, जमीन जायदाद की हानि ,माता को कष्ट तथा स्थान परिवर्तन करता है |
-----पांचवें स्थान पर  गुरु का गोचर शिक्षा में सफलता ,संतान सुख ,पद लाभ ,पदोन्नति ,हर काम में सफलता ,सट्टे या शेयर मार्किट में लाभ प्रदान करता है |
------छ्टे स्थान पर  गुरु  का गोचर रोग ,राज्य से विरोध,संतान से कष्ट ,दुर्घटना का भय तथा विवाद से हानि करता है |
-------सातवें स्थान पर  गुरु के  गोचर से  विवाह एवम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति , आरोग्यता , दान पुण्य व तीर्थ यात्रा में रूचि ,व्यवसाय व्यापार में लाभ तथा यात्रा में लाभ होता है |
-------आठवें स्थान पर   गुरु के गोचर से रोग,बंधन ,चोर या राज्य से कष्ट ,धन हानि ,संतान को कष्ट तथा कफ विकार होता है |
--------नवें  स्थान पर गुरु  के  गोचर से भाग्य वृद्धि ,धार्मिक यात्रा ,संतान सुख ,यश मान की प्राप्ति ,सफलता .आर्थिक लाभ तथा आध्यात्मिक विचारों  का श्रवण होता है |
---------दसवें  स्थान पर गुरु  के  गोचर से मान हानि ,दीनता ,व्यवसाय में बाधा व धन हानि होती है |
--------ग्यारहवें स्थान पर गुरु के गोचर से धन व प्रतिष्ठा की वृद्धि ,विवाह,संतान सुख ,पद लाभ व पदोन्नति ,व्यापार में लाभ ,वाहन सुख ,भोग विलास के साधनों की वृद्धि व सभी कार्यों में सफलता मिलती है |
--------बारहवें स्थान पर  गुरु के  गोचर से आर्थिक हानि ,व्यय में वृद्धि ,अस्वस्थता ,संतान कष्ट , मिथ्या आरोप लगने का भय होता है |
( गोचर में  गुरु के उच्च ,स्व मित्र,शत्रु नीच आदि राशियों में स्थित होने पर , अन्य ग्रहों से युति ,दृष्टि के प्रभाव से , अष्टकवर्ग फल से या वेध स्थान पर शुभाशुभ ग्रह होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है | )

बृहस्पति शान्ति के उपाय-------
-----बृहस्पति के अशुभ होने की स्थिति मे, उदर रोग, यकृत रोग, मस्तिष्क रोग, फेफड़ो के रोग, आंतो के रोग, लम्बी अवधि का बुखार, रीड़ की हड्डी के रोग, कर्ण रोग, वायुयान दुर्घटना जैसी स्थितियां बनती हैं। शिक्षा मे अवरोध, विवाह मे विध्न बाधायें, धर्म-कर्म, पूजा पाठ मे मन ना लगना, वृद्धों का सम्मान नही करना जैसी परिस्थियां आने पर बृहस्पति को अशुभ मानना चाहिये।जन्मकालीन गुरु निर्बल होने के कारण अशुभ फल देने वाला हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है -----
-----रत्न धारण – पीत रंग का  पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु ,विशाखा ,पूर्व भाद्रपद   नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद  पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें | धारण करने से पहले ॐ  ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप , पीले पुष्प, हल्दी ,अक्षत आदि से पूजन कर लें |पुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं | केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें .
-----दान व्रत ,जाप -----  
-------बृहस्पतिवार का गुरूवार के नमक रहित व्रत करना चाहिये।
-------पुखराज, कांसा, सोना, चने की दाल, खांड, घी, पीला फूल, पीला कपड़ा, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, भूमि तथा पीले फल का दान करना चाहिये।
------."ऊँ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः" का जप कम से कम 19000 बार अवष्य करना चाहिये।
------ गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल ,बेसन पपीता ,पीत रंग का वस्त्र ,स्वर्ण, इत्यादि का दान करें |
-------बृहस्पतिवार की संध्या काल मे 05 से 06 रत्ती का पुखराज अथवा उपरत्न सुनहला, प्रतिष्ठित कराकर धारण करने से अशुभ बृहस्पति का प्रभाव कम होता है।
--------बृहस्पति जी वृद्धिदायक ग्रह है विद्या, सन्तान, धर्म आदि की वृद्धि के लिये बृहस्पति जी शुभ रहना अति अनिवार्य है।
-------"ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः" मन्त्र का जप भी 19000 की संख्या मे कर सकते हैं।
-----फलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं |
------पीपल में जल चढ़ाना। सत्य बोलना। आचरण को शुद्ध रखना। पिता, दादा और गुरु का आदर करना। गुरु बनाना। घर में धूप-दीप देना।

बृहस्पति है रक्षक ग्रह------
 देवता------ब्रह्मा
दिशा----ईशान कोण
दिवस----बृहस्पतिवार
गोत्र-----अंगिरा
पोशाक-----पगड़ी
पशु-----बब्बर शेर
वृक्ष-----पीपल
पेशा----शिक्षा, सुनार
वास्तु-----सोना, पुखराज
जाति-वर्ण-----ब्राह्मण, पीत वर्ण
वाहन----ऐरावत (सफेद हाथी)
विशेषता----रहस्यमय ज्ञानी
स्वभाव----मौन एवं शांत क्षत्रिय पुरुष
बल-वृद्धि------मंगल के साथ होने से बलशाली
भ्रमण काल----एक राशि में 13 माह
नक्षत्र-----पूर्वा विशाखा, पूर्वा भाद्रपद
गुण----हवा, रूह, साँस, पिता, गुरु और सुख।
शक्ति----हकीम, साँस लेने तथा दिलाने की शक्ति
शरीर के अंग----गर्दन, नाक, माथे या नाक का सिरा
राशि-----धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु के सू.म.च. मित्र, शु.बु. शत्रु, श.रा.के. सम।
अन्य नाम----देवमंत्री, देव पुरोहित, देवेज्य, इज्य, गुरु, सुराचार्य, जीव, अंगिरा और वाचस्पति सूरी।
मकान-----सुहानी हवा के रास्ते। दरवाजा उत्तर-दक्षिण न होगा। हो सकता है कि पीपल का वृक्ष या कोई धर्मस्थान मकान के आसपास हो। ईशान या उत्तर का घर गुरु का घर कहलायेगा।

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