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सोमवार, अगस्त 20, 2012

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य-----



महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य-----

महाशिवरात्रि एक अलौकिक पर्व है, जिसके नाम, मनाने की विधि, प्रचलित कथाओं आदि में पीछे आध्यत्मिक ज्ञान ऐसे अति सूक्ष्म एवं गुहा रहस्य छिपे हुए हैं जिन्हें जानकर एवं जीवन में धारण कर अनिर्वचनीय, इंद्रियातीत सुख का, गहन शांति एवं संतुष्टि का अनुभव किया जा सकता है।
प्रत्येक पर्व किसी महान व्यक्तित्व के द्वारा किए गए कार्यो, किसी ऐतिहासिक घटना आदि की स्मृति में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का दिव्य पर्व भी वेद-शास्त्रों द्वारा अनादि, अनन्त, अकाय, अशरीरी, अजन्मा गाए जाने वाले, मुक्तेश्वर, पापकटेश्वर, आशुतोष भगवान शिव के दिव्य जन्म अर्थात शिव के अवतरण की यादगार है। यदि शिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को पूर्ण रूप से जान लिया जाए तो विश्व में शांति, प्रेम, एकता, भाईचारे एवं धार्मिक सौहार्द का वातावरण सहज ही बनाया जा सकता है क्योंकि शिवरात्रि सिर्फ शिवभक्तों का पर्व नही है लेकिन यदि सारे विश्व के प्रमुख संस्कृतियों पर शिव की छाप है, जैसे नेपाल में पशुपतिनाथ-इसी प्रकार के बेबीलोन, मिश्र, यूनान और चीन में भी किसी समय शिव की मान्यता किसी न किसी नाम से थी। बेबीलोन में शिव को ‘शिउन’ कहा जाता है। मिश्र में सेवा नाम से पूजा होती है, रोम में ‘प्रियप्स’ कहते हैं। इटली के गिरिजाघरों में आज भी शिव की प्रतिमा पाई जाती है। चीन में शिवलिंग को ‘हुवेड हिफुह’ कहा जाता है। यूनान में फल्लुस, अमेरिका के पुरूविया नामक स्थान में आज भी ईश्वर को शिवु कहते हैं तथा काबा में भी पहले शिव की प्रतिमा थी शोधकर्ताओं का कहना है कि काबा कभी शिवालय था। इससे सिद्ध होता है कि शिवपिता परमात्मा ने विश्व कल्याणकारी परिवर्तन के लिए जरूर ऐसा कोई विशेष कार्य किया होगा, तब ही तो आज तक शिव विश्वव्यापी मान्यता है।
शिवरात्रि का महातम्यः प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास की चतुदर्शी को अत्यंत श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग की विशेष आराधना की जाती है एवं उस पर बेल पत्र, धतुरा एवं आक के फूल, बेर, दूध मिश्रित शुद्ध जल अथवा लस्सी इत्यादि से अभिषेक किया जाता है। इस अवसर पर भक्तजन व्रत रखते हैं एवं रात्रि जागरण कर शिव की आराधना करते हैं। शिव की बारात निकाली जाती है। शिव के साथ रात्रि का क्या अर्थ है? श्रीकृष्ण के साथ अष्टमी तथा राम के साथ नवमी तिथि जुड़ी हुई है, परन्तु शिव के साथ रात्रि ही क्यों जुड़ी हुई है, कोई तिथि क्यों नहीं जुड़ी है? अन्य सभी देवताओं पर सुन्दर एवं सुगंधित फूल चढ़ाए जाते हैं परन्तु शिव पर आक एवं धतूरा के फूल ही क्यों चढ़ाए जाते हैं? शिव की मूर्ति शिवलिंग शरीर रहित है परन्तु उनका वाहन नन्दी शरीरधारी क्यों है? आदि शिवरात्रि से जुड़े प्रश्नों पर विवेकयुक्त और यर्थाथ ढंग से विचार करके ही संसार को नई दिशा दी जा सकती है।
शिव के साथ रात्रि शब्द क्यों? -शिवरात्रि पर्व परमपिता शिव के धरा पर दिव्य अवतरण, एवं उनके द्वारा किए गए विश्व कल्याणकारी कत्र्तव्यों की यादगार है। वस्तुतः यहां रात्रि अंधकार का, तमोगुणप्रधानता एवं अनैकता का,स्वरूप विस्मृति का तथा पापाचार का प्रतीक है। यह उस महारात्रि का वाचक है जबकि सारी सृष्टि धर्मभ्रष्ट, कर्मभ्रष्ट और विकार प्रधान हो जाती है। यह वही समय होता है जैसे गीता में धर्मग्लानि का समय कहा गया है। सर्वशक्तिवान परमात्मा शिव ऐसे ही समय पर अवतरित होकर पतितों को पावन, विकारी मनुष्यों को निर्विकारी और सतोप्रधान बनाते हैं जिसके कारण ही उन्हें पतित-पावन, पापकटेश्वर मक्तेश्वर आदि अनेकानेक नामों से पुकारा जाता है। महाशिवरात्रि के संबंध में सबसे अनोखी बात यह है कि इसका संबंध निराकर, अशरीरी, अजन्मा परमात्मा से है। जिनके अशरीरी स्वरूप की पूजा शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है। अतः परमात्मा शिव सामान्य मनुष्यों की तरह शरीरधारी नहीं हैं तथा जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हैं। गीता में भगवान ने इस संबंध में कहा है जो मुझे मनुष्यों की भांति जन्म लेने और मरने वाला समझते हैं वह मूढ़मति हैं। पुनः वह कहते हैं- मेरे दिव्य जन्म के रहस्य को न महर्षि, न देवतागण जानते हैं। इससे स्पष्ट है कि परमात्मा प्रकृति के तत्वों के अधीन कोई सामान्य मनुष्यों की तरह शरीरधारी नहीं हो सकते हैं। प्रायः सभी धर्मों के लोग निर्विवाद रूप से परमात्मा को ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप में स्वीकार करते हैं।
शिवरात्रि का रहस्यः शिवरात्रि के आध्यात्मिक मर्म को समझने से ही स्वयं का और सम्पूर्ण विश्व का कल्याण संभव है। शिव पर चढ़ाया जाने वाला धतूरा-विकारों का प्रतीक है, आक का फूल-नफरत, घृणा एवं विकारों का प्रतीक है। अतः हमें परमात्मा पर व्यसन-विकारों, विषय-वासना एवं बुरी आदतों को समर्पित करना चाहिए ताकि हमारा जीवन निर्विकारी एवं पवित्र बन सके। रात्रि जागरण का आध्यात्मिक रहस्य यह है कि परमात्मा शिव के वर्तमान अवरतण काल में उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान योग को स्वयं में धारण कर अपनी आत्मिक ज्योति को जगाएं। अतः सभी शिवभक्तों से अनुरोध है कि महाशिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को समझकर अपने तमोगुणी स्वभाव-संस्कारों का त्याग करके, स्वयं के जीवन में तथा इस विश्व में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के मंगलमय तत्व का संचार करें। 

पंडित दयानन्द शास्त्री
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