WIDGEO...MESSAGE

शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

अशुभ मंगल या मंगल दोष के कारण होने वाले रोग/बीमारियां -- एक ज्योतिषिय विश्लेषण

|| अशुभ मंगल या मंगल दोष के कारण होने वाले रोग/बीमारियां -- एक ज्योतिषिय विश्लेषण  ||

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चंद्र, शनि, राहु एवं केतु के रूप में नौ ग्रह होते हैं। सामान्य रूप से बृहस्पति (गुरु), बुध और चंद्रमा को शुभ ग्रह माना जाता है और सूर्य, मंगल, शनि, राहु एवं केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं। इन अशुभ ग्रहों को ही रोगकारक माना जाता है। विशिष्ट और विपरीत ग्रहदशा में सभी ग्रह अपना अशुभ प्रभाव छोड़ते हैं।हर किसी के जीवन में रोग और पीड़ाएं आती रहती हैं। ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के जीवन में पीड़ा और रोगों के लिए ग्रह नक्षत्र ही जिम्मेदार होते हैं। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार मंगल ग्रह व्यक्ति के रक्त मज्जा और हड्डीयों पर प्रभुत्व रखता है। मंगल ही रोग और विकारों का शमन कर लंबी आयु प्रदान करता है।

ग्रहों की प्रतिकूलता मनुष्य और वातावरण के बीच के ऊर्जा प्रवाह को प्रभावित करती है। इसके इस असंतुलन के प्रभाव से विभिन्न प्रकार के रोग, विकार पनपते हैं। चूंकि सूर्य पित्त प्रकृति को बढ़ावा देता है, अत: इसका कमजोर एवं बलवान होना, दोनों ही दशा में समस्या खड़ी होती है।सौर मंडल में मंगल का अपना स्थान है। मंगल भी धरती को कई सारी आपदाओं से बचाता है। मंगल ग्रह धरती को शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव से भी बचाता है। मंगल के कारण ही समुद्र में मूंगे की पहाड़ियां जन्म लेती हैं और उसी के कारण प्रकृति में लाल रंग उत्पन्न हुआ है।मंगल उष्ण प्रकृति का ग्रह है.इसे पाप ग्रह माना जाता है. विवाह और वैवाहिक जीवन में मंगल का अशुभ प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है.मंगल दोष जिसे मंगली के नाम से जाना जाता है इसके कारण कई स्त्री और पुरूष आजीवन अविवाहित ही रह जाते हैं.


















ज्योतिष के अनुसार मंगल की चार भुजाएँ है | इनके शारीर के रोए लाल है तथा इनके हाथो में अभय मुद्रा, त्रिशूल, गदा और वर मुद्रा है | इन्होने लाल माला और लाल वस्त्र धारण कर रखे है | इनके मस्तक पर स्वर्ण मुकुट है तथा ये मेष ( मेंढा ) के वहां पर स्वर है | ज्योतिष में मंगल को क्रूर ग्रह माना गया है जिसका अर्थ अग्नि के समान लाल है, इसलिए इसे अंगारक भी कहते है | वे स्वतंत्र प्रकृति के तथा अनुशासन प्रिय है | 

इस ग्रह से प्रभावित जातक सेनाध्यक्ष या राजदूत आदि होते है या उच्च पदों पर कार्य करते है | उनमे नेतृत्व शक्ति विशेष होती है | वे निडर होते है, किसी भी प्रकार का जोखिम ले सकते है | खिलाडी, वायुसेना, थलसेना, नौसेना के अध्यक्ष तथा उच्च पदों पर आसीन राजनीतिज्ञ मंगल से प्रभावित माने जाते है | मंगल को भौम, कुज आदि नामो से भी जाना जाता है | नवग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गई है | 

शारीरिक तौर पर मंगल प्रभावित जातक स्वस्थ और माध्यम लम्बे कद के होते है | कमर पतली, छाती चौड़ी, बाल घुंगराले और आँखे लाल होती है | उनके चेहरे पर तेज होता है | मंगल मेष एवं वृशिक राशी के स्वामी है | मृगशिरा, चित्रा और घनिष्ठा नक्षत्रो का स्वामित्व भी मंगल को ही प्राप्त है | मंगल तृतीय एवं षष्ठ भाव के कारक ग्रह है | कर्क एवं सिंह लग्न की कुंडली में विशेष कारक माने जाते है एवं मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में यह विशेष अकारक ग्रह बन जाते है | 

मंगल मकर राशि में उच्च एवं कर्क राशि में नीच के होते है | जन्म-कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थित होते है, उस भाव से सम्बंधित कार्य को अपनी स्थिति के अनुसार सुदृढ़ करते है | शुभ मंगल, मंगलकारी और अशुभ मंगल, अमंगलकारी कार्य करवाते है | मंगल शक्ति, साहस, क्रोध, युद्ध, दुर्घटना, षड़यंत्र, बीमारियों, विवाद, भूमि सम्बन्धी आदि कार्यो का कारक ग्रह है | मंगल तांबे, खनिज पदार्थो , सोने, मूंगे, हथियार, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है | 

मंगल पित्त कारक है। यह अत्यंत उग्र है एवं उत्तेजना पैदा करता है। यह सिर, मज्जा, पित्त, हीमोग्लोबिन तथा गर्भाशय का नियमन करता है। अत: इससे संबंधित सभी रोग मंगल के प्रकोप से होते हैं। मंगल दुर्घटना, चोट, मोच, जलन, शल्यक्रिया, उच्चरक्तचाप, पथरी, हथियारों एवं विष से क्षति देता है।मंगल के कारण ही गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली,रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग,रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर,दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर,अग्निदाह, चोट इत्यादि बीमारियां/रोग होते हैं | 
---जब मंगल-शनि की युति हो तो रक्त विकार, कोढ़या जिस्म का फट जाना आदि रोग से कष्ट होगा अथवा दुर्घटना से चोट-चपेट लगने के कारण कष्ट होता है।
--गुरु-मंगल या चन्द्र-मंगल की युति हो तो पीलिया रोग से कष्ट होता है।
--मंगल-राहु या केतु-मंगल की युति हो तो शरीर में टयूमर या कैंसर से कष्ट होगा।
मनुष्य के शरीर में मंगल शिराओं व धमनियों की टूट-फूट, अस्थि मज्जा के रोग, रक्त्रस्राव, गर्भपात, मासिक धर्म में अनियमितता, सुजाक गठिया और दुर्घटना तथा जलना का प्रतिक है | मंगल किसी भी जातक के शरीर में रक्त,उत्तेजना,बाजू,क्रूरता,साहस,कान का करक होता हैं |मंगल अशुभ होने पर रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े एवं जिगर के रोग भी हो सकते हैं | 

जब कभी अशुभ मंगल अमंगलकारी हो जाता है | जिसके प्रभाव से जातक आतंकवादी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी और विद्रोही बनता है | इन सभी से बचने के श्री अंगारेश्वर महादेव पर भात पूजा द्वारा मंगलदोष शांति अवश्य करवाना चाहिये | मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना एवं मूंगा रत्ना धारण करने का भी विधान है |

यदि आपकी कुंडली में मंगलदोष है या आपकी तरक्की में यह आड़े आ रहा है तो आप रक्तदान कर इससे शांति पा सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रक्त दान मंगल दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक है। रक्त दान से रक्त का शोधन होता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इस तरह कई बीमारियां दूर रहती हैं। दान को शास्त्रों में भी महान बताया गया है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि रक्त मंगल का कारक है। इसके दान से मंगल (भौम) ग्रह दोष से मुक्ति मिलती है। जिन जातकों के लग्न में तीसरे, ११वें अथवा छठे, 12वें स्थान में मंगल हो उन्हें विशेष रूप से रक्त दान करना चाहिए।

इससे जीवन में शांति बनी रहती है। रक्तदान से ब्लड में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है। इस तरह हार्ट संबंधी बीमारियों से बचा जा सकता है। साथ ही हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) के कारण पैरालिसिस या ब्रेन हेमरेज की आशंका नहीं रहती है।यह ऑक्सीजन पार्लर का काम करता है। नए रक्त कण बोनमैरो से आने पर शरीर तरोताजा और स्वस्थ्य महसूस करता है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर, पल्स रेट, बुखार, हेपेटाइटिस बी व सी, मलेरिया, एचआईवी, हीमोग्लोबीन, ब्लड ग्रुप की भी जांच हो जाती है।

अशुभ मंगल के कारण होने वाले कुछ मुख्य रोग/बीमारियां--
---उच्च रक्तचाप।
----वात रोग।
---गठिया रोग।
---फोड़े-फुंसी होते हैं।
---जख्मी या चोट।
---बार-बार बुखार आता रहता है।
---शरीर में कंपन होता रहता है।
---गुर्दे में पथरी हो जाती है।
---आदमी की शारीरिक ताकत कम हो जाती है।
---एक आंख से दिखना बंद हो सकता है।
---शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं। 
----मंगल से रक्त संबंधी बीमारी होती है। रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है।
---बच्चे पैदा करने में तकलीफ। हो भी जाते हैं तो बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं। 

हमारे शास्त्रों में हर विलक्षण वस्तु दान करने के लिए कही गई है। देह दान, नेत्र, अंग और रक्त दान का अपना महत्व है। ज्योतिष शास्त्र की बात करें तो रक्त को मंगल का कारक माना गया है। मंगलदोष से मुक्ति का एक माध्यम रक्तदान भी कम जिसके कारण रक्तदान करने वाले को चोरी, अग्नि समेत अन्य आकस्मिक भय नहीं सताते।

यहाँ दिए गए सभी रोग प्रायः युति कारक ग्रहों की दशार्न्तदशा के साथ-साथ गोचर में भी अशुभ हों तो ग्रह युति का फल मिलता है! इन योगों को कुंडली में देखकर विचार सकते हैं। ऐसा करके आप होने वाले रोगों का पूर्वाभास करके स्वास्थ्य के लिए सजग रह सकते हैं।

!! जानिए की कैसे होती हैं मंगलदोष शमन के लिए भात पूजा !!

मंगलदोष के शमन का सरल एवं अचूक उपाय मंगल ग्रह का भात पूजन है | जिसके अनुसार सर्वप्रथम पंचांग कर्म जिसमे गणेशाम्बिका पूजन , पुण्याहवाचन, षोडश मातृका पूजन, नान्दी श्राद्ध एवं ब्राह्मन पूजन किया जाता है | तत्पश्चात भगवान श्री अंगारेश्वर पर मंगल देव का दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, अष्टगंध, इत्र एवं भांग से स्नान करा कर मंगल स्त्रोत का पाठ किया जाता है | शिव के रूप में होने के कारण रुद्राभिषेक या शिवमहिम्न स्त्रोत का पाठ किया जाता है | उसके बाद पके हुए चावल को ठंडाकर उसमे पंचामृत मिलाकर श्री अंगारेश्वर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है एवं आकर्षक श्रृंगार किया जाता है | षोडशोपचार पूजन एवं आरती करके अग्नि स्थापन, नवग्रह एवं रूद्र स्थापन पूजन कर हवन किया जाता है | 

विद्वानों के अनुसार मंगल ग्रह की प्रकृति गर्म है | अत: शीतलता एवं मंगल दोष की निवृत्ति के लिए भगवान मंगलदेव को भात चढ़ाया जाता है | मंगल दोष युक्त जातक जिनके विवाह में बाधा आ रही हो उन्हें श्री अंगारेश्वर पर अवश्य ही मंगलदोष निवारण के लिए भात पूजन करवाना चाहिये |

मंगल पूजा :---- 
"ॐ भौमाय नम :" पूजा, का अर्थ है, भक्ति और श्रद्धा | पूजा शब्द को 'पु-जय' या पूजा से व्युत्पन्न माना जाता है, अब शब्द पूजा को पूजा के सभी रूपों जैसे साधारण दैनिक प्रसाद से लेकर फल, फुल, पत्ते, चावल मिठाइयाँ, मंदिरों और घरों में देवताओं को समर्पित करने के लिए किया जाता है, पूजा के तीन प्रकार होते हैं: "दीर्घ", "मध्य" और "लघु" | पूजा केवल मंदिरों में ही नहीं, बल्कि अधिकांशतः घरों में दिनों के कार्यक्रम का आरंभ भगवान की पूजा से की जाती है | जागरण / भजन / कीर्तन / रामायण या ग्रंथों का अध्ययन/ पूजा अनुष्ठान का उद्देश्य हमारे चारों ओर आध्यात्मिक बलों की स्थापना है | 

श्री अंगारेश्वर महादेव (उज्जैन, मध्यप्रदेश) पर मंगलदोष निवारण हेतु  पूजा-अनुष्ठान का उद्देश्य बाधाओं को हटाना है | जो जप करके प्राप्त किया जाता है. विशिष्ट पूजा के द्वारा हम हानिकर बल से छुटकारा, सुख, शांति और समृद्धि पा सकते है | नए उद्यम शुरू करने में सकारात्मक कंपन पैदा करने के लिए, घर, नौकरी, व्यवसाय में बाधाएं दूर करने के लिए, शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए, नेतृत्व कौशल बढ़ाने के लिए हम साधना करके लाभ बढ़ा सकते हैं | सामान्य तरीकों में ध्यान, मंत्र जप, शांति, प्रार्थना शामिल हैं | उपवास या भगवान का नाम जप, धर्मदान. ये मनोरथ से किया जा सकता है | 

श्री अंगारेश्वर पर मंगल पूजा (भात पूजन), मंगल ग्रह के लिए समर्पित है | मंगलदोष शांति पूजा ऋण, गरीबी और त्वचा की समस्याओं से राहत के लिए लाभकारी है | इन कार्यों के परिणाम के लिए सक्षम हो हमें और अधिक गहरा आध्यात्मिक पूजा द्वारा लागू ऊर्जा आत्मसात करने के लिए मंगलदेव की भात पूजा श्री अंगारेश्वर महादेव (उज्जैन, मध्यप्रदेश) पर करने की ज़रूरत है |

मंगलदोष निवारण के लिए इनका करें दान--- मूंगा, गेहूं, मसूर, लाल वस्त्र, कनेर पुष्प, गुड़, तांबा,लाल चंदन, केसर.

गुरुवार, फ़रवरी 26, 2015

जानिए मंगलदोष निवारण और श्री अंगारेश्वर महादेव(उज्जैन, मध्यप्रदेश) का सम्बन्ध

जानिए मंगलदोष निवारण और श्री अंगारेश्वर महादेव(उज्जैन, मध्यप्रदेश) का सम्बन्ध ..???

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं जैसे कालसर्प योग, पितृदोष, नाड़ीदोष, गणदोष, चाण्डालदोष, ग्रहणयोग, मंगलदोष या मांगलिक दोष आदि। इनमें मंगल दोष एक ऐसा दोष है जिसकी वजह से व्यक्ति को विवाह संबंधी परेशानियों, रक्त संबंधी बीमारियों और भूमि-भवन के सुख में कमियां रहती हैं।

विवाह सम्बंधों में आजकल मंगलीक शब्द एक प्रकार से भय तथा अमंगल का सूचक बन गया है. परन्तू यहाँ यह जानना आवश्यक है की प्रत्येक मंगली जातक, विवाह के लिए अयोग्य होता है यह कहना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा . मंगली दोष का नाम सुनते ही वर और कन्या के अभिभावक सतर्क हो जाते है,विवाह सम्बन्धो के लिये मंगलिक शब्द एक प्रकार से भय अथा अमंगल का सूचक बन गया है,परन्तु प्रत्येक मंगली जातक विवाह के अयोग्य नही होता है,सामान्यत: मंगलीक दिखाई पडने वाली जन्म पत्रियां भी ग्रहों की स्थिति तथा द्रिष्टि के कारण दोष रहित हो जाती हैसामान्यतः जो कुण्डली प्रथम द्रष्टी में मंगलीक प्रतीत होती है वे जन्म कुण्डलिया भी ग्रहों की स्थिति तथा दृष्टि के कारण दोष रहित होंती है. इसलिए जन्म कुण्डली का बारीकी से अध्यन अति आवश्यक है .शुभ ग्रह एक भी यदि केंद्र में हो तो सर्वारिष्ट भंग योग बना देता है। 

शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। ‍फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार पूर्ण संतुष्ट हों अपने पारिवारिक संबंध के कारण तो भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए।

ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें। 

गोलिया मंगल 'पगड़ी मंगल' तथा चुनड़ी मंगल : जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।
====================================================












पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवग्रहों में विशेष स्थान रखने वाले मंगल ग्रह का जन्म स्थान उज्जैन यानि प्राचीन नगरी अवन्तिका को माना गया है। देश के सभी स्थानों से मंगल पीड़ा निवारण और अनुग्रह प्राप्त करने के लिए लोग यहां आते हैं। जनमान्यताओं के अनुसार मंगल की जन्म स्थली पर भात पूजा कराने से मंगलजन्य कष्ट से व्यक्ति को शांति मिलती है। मंगल को नवग्रहों में सेनापति के पद से शुशोभित किया गया है। जन्म कुंडली में मंगल की प्रधानता जहां मंगल दोष उत्पन्न करती है, वहीं व्यक्ति को सेना, पुलिस या पराक्रमी पदो पर शुशोभित कर यश और कीर्ति भी दिलती है।

जब अंगारका का जन्म हुआ , तभी से वह वक्री कार्य करने लगा। इसकी उत्पत्ति के बाद भूकंप और ज्वालामुखी जैसे उत्पाद होने लगे और पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच गई। यह देख ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अंगारक को अपने पास बुलाया और कहा तुम्हें पृथ्वी पर मंगल करने के लिए उत्पन्न किया गया है न कि अमंगल करने के लिए। इस पर मंगल ने कहा कि यदि पृथ्वी का अमंगल रोककर मंगल करना है तो आप मुझे शक्ति और सामथ्र्य दीजिए। 

इस पर भगवान शिव ने अंगारक को तपस्या करने का आदेश दिया। अंकारक ने पूछा कि मैं किस स्थान पर तपस्या करूं? इस पर भगवान शिव ने कहा महाकाल के वन क्षेत्र में खरगता के संगम पर तपस्या करो। भगवान शिव के आदेश पर मंगल ने 16,000 वर्ष तक घोर तपस्या की। मंगल की तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और मंगल को ग्रहों का सेनापति बना दिया। नवग्रहों में इसे तीसरा स्थान प्रदान किया। अंगारक के पूछने पर कि मेरा पूजन कहां होगा तथा मेरा प्रभाव क्या होगा? इस पर शिव ने कहा कि मेरे लिंग पर आकर तुमने तप किया है। इसलिए यह लिंग तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। तुम मनुष्य मात्र की कुंडलियों में योग कारक रहोगे। योग की अनुकूलता के लिए जो व्यक्ति यहां (अवंन्तिका) आकर तुम्हारी पूजा करेगा, उसका मंगल होगा। तभी से लोग मंगल की पूजा के लिए उज्जैन  में आते हैं और अपनी श्रद्धा अनुसार अंगारेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करके मंगल की अनुकूलता प्राप्त करते हैं। 
======================================================
कैसे बनता है मांगलिक दोष.??? 

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम या चतुर्थ या सप्तम या अष्टम या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक मानी जाती है। हांलाकि मांगलिक योग हर स्थिति में अशुभ नहीं होता है। कुछ लोगों के लिए यह योग शुभ फल देने वाला भी होता है।
जिन लोगों की कुंडली मांगलिक होती है उन्हें प्रति मंगलवार मंगलदेव के निमित्त विशेष पूजन करना चाहिए। मंगलदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं जैसे लाल मसूर की दाल, लाल कपड़े का दान करना चाहिए।
आजकल भारत ही नही विश्व मे भी मंगली दोष के परिहार के उपाय पूंछे जाने लगे हैं। जो लोग भली भांति मंगली दोष से पीडित है और उन्होने अगर मंगली व्यक्ति को ही अपना सहचर नही बनाया है तो उनकी जिन्दगियां नर्क के समान बन गयीं है,यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। जन्म कुन्डली के अनुसार अगर मंगल लगन में है,मंगल दूसरे भाव में है,मंगल अगर चौथे भाव में है,मंगल अगर अष्टम भाव में है,मंगल अगर बारहवें भाव में है तो मंगली दोष लग जाता है। मंगली दोष हमेशा प्रभावी नही रहता है,मंगल अगर किसी खराब ग्रह जैसे राहु केतु या शनि से पीडित हो रहा हो तो मंगली दोष अधिक परेशान करता है,अगर वही मंगल अगर किसी प्रकार से गुरु या चन्द्र से प्रभावित हो जाता है तो मंगल साफ़ और शुद्ध होकर पूजा पाठ और सामाजिक मान्यता में अपना नाम और धन कमाने में सफ़ल रहता है,इसलिये मंगल को समझने के लिये मंगल का रूप समझना बहुत जरूरी है। मंगल पति की कुन्डली में उसके खून का कारक होता है,उसकी शक्ति जो पौरुषता के रूप में जानी जाती है के रूप में होता है,मंगल भाइयों के रूप में भी जाना जाता है,और मंगल अगर कैरियर का बखान करता है तो वह शनि के साथ मिलकर डाक्टरी,इन्जीनियरिंग,रक्षा सेवा और जमीनी मिट्टी को पकाने के काम,जमीनी धातुओं को गलाने और उनसे व्यवसाय करने वाले काम,भवन निर्माता और रत्नों आदि की कटाई के लिये लगाये जाने वाले उद्योगों के रूप में भी जाना जाता है।

जानिए लगन का मंगल काप्रभाव--

जन्म समय के अनुसार लगन में मंगल के विद्यमान होने पर जातक का दिमाग गर्म रहने वाली बात पायी जाती है,लगन शरीर में मस्तिष्क का कारक है,मस्तिष्क के अन्दर गर्मी रहने जातक को जो भी करना होता है वह तामसी रूप से करता है,शादी के बाद शरीर का शुक्र (रज और वीर्य) जो बाल्यकाल से जमा रहता है वह खत्म होने लगता है शरीर की ताकत रज या वीर्य के द्वारा ही सम्भव है,और शुक्र ही मंगल को (खून की गर्मी) को साधे रहने में सहायक माना जाता है,लेकिन रज या वीर्य के कम होने से शरीर के अन्दर का खून मस्तिष्क में जल्दी जल्दी चढने उतरने लगता है,जातक को जरा सी बात पर चिढचिढापन आने लगता है,इन कारणों से पत्नी से मारपीट या पति की बातों को कुछ भी महत्व नही देने के कारण परिवाव में विघटन शुरु हो जाता है,यह मंगल सीधे तरीके से अपनी द्रिष्टियों से चौथे भाव यानी सुखों में (लगन से चौथा भाव) सहचर के कार्यों में सप्तम से दसवां भाव),सहचर के शरीर को (लगन से सप्तम),सहचर के धन और कुटुम्ब ( सहचर के दूसरे भाव) को अपने कन्ट्रोल में रखना चाहता है,ज्योतिष में मंगल की भूमिका एक सेनापति के रूप में दी गयी है,और जातक उपरोक्त कारकों को अपने बस में रखने की कोशिश करता है,जातक सहचर के कुटुम्ब और सहचर के भौतिक धन को अपना अपमान समझता है (लगन से अष्टम सहचर का कुटुम्ब और भौतिक धन तथा जातक का अपमान मृत्यु जान जोखिम और गुप्त रूप से प्रयोग करने वाला स्थान).इन कारणों के अलावा जिन जातकों के मंगल पर राहु के द्वारा असर दिया जाता है तो जातक के खून के अन्दर और प्रेसर बढ जाता है,और उसके अन्दर इस मंगल के कारण दिमाग को और अधिक सुन्न करने के लिये जातक तामसी कारकों को लेना शुरु कर देता है,दवाइयों की मात्रा बढ जाती है,राहु के असर से जातक के खून के अन्दर कैमिकल मिल जाते है जिनके द्वारा उसे कुछ करना होता है और वह कुछ करने लगता है.मंगल के अन्दर शनि की द्रिष्टि होने से जातक का खून जमने लगता है,और खून के सिर में जमने के कारण जातक को ब्रेन हेमरेज या दिमागी नसों का फ़टना आम बात मानी जाती है,जातक किसी भी पारिवारिक व्यवस्था को केवल कसाई वृत्ति से देखने लगता है,अक्सर इन कारणों के कारण ही जातक की बुद्धि समय पर काम नही कर पाती है और आजकल के भौतिक युग में एक्सीडेंट और सिर की चोटों का रूप मिलता है,जातक के सिर के अन्दर शनि की ठंडक और मंगल की गर्मी के धीरे धीरे ठंडे होने के कारण जातक शादी के बाद से ही कार्यों से दूर होता जाता है,मंगल पर अगर केतु का असर होता है तो जातक का खून निगेटिव विचारों की तरफ़ भागता है उसे लाख समझाया जाये कि यह काम हो जायेगा,तो वह अजीब अजीब से उदाहरण देना शुरु कर देता है अमुक का काम नही हुआ था,अमुक के काम में फ़ला बाधा आ गयी थी,उसे अधिक से अधिक सहारे की जरूरत पडती है,शादी सम्बन्ध का जो फ़ल जातक के सहचर को मिलना चाहिये उनसे वह दूर होता रहता है,और कारणों के अन्दर सहचर के अन्दर जातक के प्रति बिलकुल नकारात्मक प्रभाव शुरु हो जाते है,या तो जातक का सहचर किसी व्यभिचार के अन्दर अपना मन लगा लेता है अथवा वह अपने को अपमान की जिन्दगी नही जीने के कारण आत्महत्या की तरफ़ अग्रसर होता चला जाता है,इसी प्रकार से मंगल पर अगर सूर्य की द्रिष्टि होती है तो जातक के अन्दर दोहरी अहम की मात्रा बढ जाती है और जातक किसी को कुछ नही समझता है इसके चलते सहचर के अन्दर धीरे धीरे नकारात्मक स्थिति पैदा हो जाती है जातक या तो जीवन भर उस अहम को हजम करता रहता है अथवा किसी भी तरह से जातक से कोर्ट केश या समाज के द्वारा तलाक ले लेता है,इसी प्रकार से अन्य कारण भी माने जाते है।

जानिए चतुर्थ भाव में मंगल का प्रभाव---

कुन्डली से चौथा भाव सुखों का भाव है,इसी भाव से मानसिक विचारों को देखा जाता है,माता के लिये और रहने वाले मकान के लिये भी इसी भाव से जाना जाता है,यही भाव वाहनों के लिये और यही भाव पानी तथा पानी वाले साधनों के लिये माना जाता है,घर के अन्दर नींद निकालने का भाव भी चौथा है.सहचर के भाव से यह भाव कर्म का भाव होता है,जब जातक एक चौथे भाव में मंगल होता है तो जातक का स्वभाव चिढचिढा होता है वह जानपहिचान वाले लोगों से ही लडता रहता है,जातक के निवास स्थान में इसी मंगल के कारण लोग कुत्ते बिल्ली की तरह झगडा करने वाले होते है,हर व्यक्ति उस जातक के घर का अपने अपने तर्क को ताकत से देना चाहता है,अक्सर वाहन चलाते वक्त साथ में चलने वाले वाहनों के प्रति आगे जाने की होड भी इसी मंगल वाले लोग करते है,और जरा सी चूक होने के साथ ही या तो सीधे अस्पताल जाते है या फ़िर वाहन को क्षतिग्रस्त करते हैं। सहचर के कार्य भी तमतमाहट से भरे होते है,जातक की माता सहचर के कार्यों से हमेशा रुष्ट रहती है,जातक के शरीर में पानी की कमी होती है,वह अपने सहचर को कन्ट्रोल में रखना चाहता है,अपने पिता के कार्यों में दखल देने वाला और बडे भाई तथा दोस्तों के साथ सीधे रूप में प्रतिद्वंदी के रूप में सामने आता है,सहचर के परिवार वालों से भी वह उसी प्रकार से व्यवहार करता है जैसे कोई सेनापति अपने जवानों को हमेशा सेल्यूट मारने के लिये विवश करता है,जातक को घर वालों से अधिक बाहर वालों से अधिक मोह होता है और जातक का स्वभाव सहचर के लिये,शरीर,मन,और शिक्षा के प्रति भी रुष्ट रहता है। मंगल के चौथे भाव में होने का एक मतलब और होता है कि जातक का दिल शरबत की तरह मीठा होता है,और वह जातक को जरा जरा सी बातों के अन्दर चिपकन पैदा कर देता है,उसे हर कोई पी जाना चाहता है।

जानिए मंगल का सप्तम में प्रभाव----

मंगल का सप्तम में होना पति या पत्नी के लिये हानिकारक माना जाता है,उसका कारण होता है कि पति या पत्नी के बीच की दूरिया केवल इसलिये हो जाती है क्योंकि पति या पत्नी के परिवार वाले जिसके अन्दर माता या पिता को यह मंगल जलन या गुस्सा देता है,जब भी कोई बात बनती है तो पति या पत्नी के लिये सोचने लायक हो जाती है,और अक्सर पारिवारिक मामलों के कारण रिस्ते खराब हो जाते है। पति की कुंडली में सप्तम भाव मे मंगल होने से पति का झुकाव अक्सर सेक्स के मामलों में कई महिलाओं के साथ हो जाता है,और पति के कामों के अन्दर काम भी उसी प्रकार के होते है जिनसे पति को महिलाओं के सानिध्य मे आना पडता है। पति के अन्दर अधिक गर्मी के कारण किसी भी प्रकार की जाने वाली बात को धधकते हुये अंगारे की तरफ़ मारा जाता है,जिससे पत्नी का ह्रदय बातों को सुनकर विदीर्ण हो जाता है,अक्सर वह मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती है,उससे न तो पति को छोडा जा सकता है और ना ही ग्रहण किया जा सकता है,पति की माता और पिता को अधिक परेशानी हो जाती है,माता के अन्दर कितनी ही बुराइयां पत्नी के अन्दर दिखाई देने लगती है,वह बात बात में पत्नी को ताने मारने लगती है,और घर के अन्दर इतना क्लेश बढ जाता है कि पिता के लिये असहनीय हो जाता है,या तो पिता ही घर छोड कर चला जाता है,अथवा वह कोर्ट केश आदि में चला जाता है,इस प्रकार की बातों के कारण पत्नी के परिवार वाले सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये पत्नी को अपने साथ ले जाते है। पति की दूसरी शादी होती है,और दूसरी शादी का सम्बन्ध अक्सर कुंडली के दूसरे भाव से सातवें और ग्यारहवें भाव से होने के कारण दूसरी पत्नी का परिवार पति के लिये चुनौती भरा हो जाता है,और पति के लिये दूसरी पत्नी के द्वारा उसके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के कारण वह धीरे धीरे अपने कार्यों से अपने व्यवहार से पत्नी से दूरियां बनाना शुरु कर देता है,और एक दिन ऐसा आता है कि दूसरी पत्नी पति पर उसी तरह से शासन करने लगती है जिस प्रकार से एक नौकर से मालिक व्यवहार करता है,जब भी कोई बात होती है तो पत्नी अपने बच्चों के द्वारा पति को प्रताणित करवाती है,पति को मजबूरी से मंगल की उम्र निकल जाने के कारण सब कुछ सुनना पडता है।

जानिए अष्टम भाव के  मंगल का प्रभाव----

लगन से आठवा मंगल अक्सर पति या पत्नी के लिये सबसे छोटी संतान होने के लिये इशारा करता है,अगर वह छोटी संतान नही होती है तो उससे छोटे भाई या बहिन के लिये कम से कम ढाई साल का अन्तर जरूर होता है। आठवां मंगल अक्सर केवल सेक्स के लिये स्त्री सम्बन्धों की चाहत रखता है,वह बडे भाई तथा छोटे भाई बहिनों के लिये मारक होता है,उसका प्रेम केवल धन और कुटुम्ब की सम्पत्ति से होता है,वह अपनी चाहत के लिये परिवार का नाश भी कर सकता है,अष्टम मंगल वाला पति या पत्नी अपने परिवार के लिये और ससुराल खान्दान की सामाजिक स्थिति को बरबाद करने के लिये अपना महत्वपूर्ण कार्य करता है। तामसिक खानपान और खून के गाढे होने के कारण तथा लो ब्लड प्रेसर होने के कारण नकारात्मक भाव हमेशा सामने होते है,पति या पत्नी शादी के बाद कडक भाषा का प्रयोग करने लगते है,अथवा अस्पताली कारणों के घेरे मे आजाते है,अधिकतर मामलों में दवाइयों के लिये अथवा पुलिस या अन्य प्रकार के चक्करों में व्यक्ति का जीवन लगा रहता है,धन के मामले में अक्सर इस मंगल वाला अपहरण चालाकी या कूटनीति का सहारा लेकर कोई भी काम करता है।
======================================================
शास्त्रों के अनुसार मंगल दोष का निवारण मध्यप्रदेश के उज्जैन में ही हो सकता है। अन्य किसी स्थान पर नहीं। उज्जैन ही मंगल देव का जन्म स्थान है और मंगल के सभी दोषों का निवारण यहीं किए जाने की मान्यता है। मंगलदेव के निमित्त भात पूजा की जाती है। जिससे मंगल दोषों की शांति होती है।यह पूजा अंगारेश्वर महादेव नमक स्थान पर संपन्न होती हैं जो की उज्जैन (मध्यप्रदेश) रेलवे स्टेशन से लगभग 06  किलोमीटर दूर हैं...
------------------------------------------------------------------------------
मंगल दोष : कारण और निवारण(क्या करें जब कुंडली में हो मंगल दोष)----

जिस जातक की जन्म कुंडली, लग्न/चंद्र कुंडली आदि में मंगल ग्रह, लग्न से लग्न में (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश भावों में से कहीं भी स्थित हो, तो उसे मांगलिक कहते हैं।
गोलिया मंगल 'पगड़ी मंगल' तथा चुनड़ी मंगल : जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।

मांगलिक कुंडली का मिलान :---- 

वर, कन्या दोनों की कुंडली ही मांगलिक हों तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है। एक सादी एवं एक कुंडली मांगलिक नहीं होना चाहिए।

मंगल-दोष निवारण :------ मांगलिक कुंडली के सामने मंगल वाले स्थान को छोड़कर दूसरे स्थानों में पाप ग्रह हों तो दोष भंग हो जाता है। उसे फिर मंगली दोष रहित माना जाता है तथा केंद्र में चंद्रमा 1, 4, 7, 10वें भाव में हो तो मंगली दोष दूर हो जाता है। शुभ ग्रह एक भी यदि केंद्र में हो तो सर्वारिष्ट भंग योग बना देता है।

शास्त्रकारों का मत ही इसका निर्णय करता है कि जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। ‍फिर भी मांगलिक एवं अमांगलिक पत्रिका हो, दोनों परिवार पूर्ण संतुष्ट हों अपने पारिवारिक संबंध के कारण तो भी यह संबंध श्रेष्ठ नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए।
ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें।
मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।

विशेष :---- विशेषकर जो मांगलिक हैं उन्हें इसकी पूजा अवश्य करना चाहिए। चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल यंत्र मांगलिकों को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है।

---------------------------------------------------------------------------------------------------
ऐसे हो जाता हैं म्ंगलीदोष का परिहारः---

1 . जन्मकुण्डली के प्रथम , द्वितीय , चतुर्थ , सप्तम, अष्टम , एकादश् तथा द्वादश् इनमें से किसी भी भाव में मंगल बैठा हो तो वह वर वधू का विघटन कराता है परन्तु इन भावों में बैठा हुआ मंगल यदि स्वक्षेत्री हो तो दोषकारक नहीं होता.
2 .यदि जन्मकुण्डली के प्रथम भाव (लग्न) में मंगल मेष राषि का हो , द्वादश भाव में धनु राषि का हो चतुर्थ भाव में वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मीन राशि का हो तथा अष्टम भाव में कुम्भ को हो तो मंगली दोष नहीं लगता.
3 .यदि जन्मकुण्डली के सप्तम , लग्न (प्रथम ) , चतुर्थ , अष्टम अथवा द्वादश भाव में शनि बैठा हो तो मंगली दोष नहीं रहता अर्थात पहले वर्णन किए गये मंगली दोष वाले भावों – 1/2/4/7/8/11/12 में मंगल के साथ ही यदि बृहस्पति अथवा चन्द्रमा भी बैठा हो अथवा इन भावों में मंगल बैठा हो परन्तु केन्द्र अर्थात 1/4/7/10 भावों में चन्द्रमा बैठा हो तो मंगली – दोष दूर हो जाता है.
4 .केन्द्र और त्रिकोण भावों में यदि शुभग्रह हो तथा तृतीय , षष्ठ एवं एकादष भावों में पापग्रह हो तथा सप्तमभाव का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो तो मंगली दोष नहीं लगता .वर तथा कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में यदि मंगल शनि अथवा कोई अन्य पापग्रह एक जैसी स्थिति में बैठे हों तो मंगली दोष नष्ट हो जाता है.
5 .यदि वर कन्या दोनो की जन्मकुण्डली के समान भावों में मंगल अथवा वैसे ही कोई पापग्रह बैठे हो तो मंगली दोष नहीं लगता. ऐसा विवाह शुभप्रद ,दीर्घायुष्य देने वाला तथा पुत्र पौत्रदायक होता है.
6 .यदि अनिष्ठ भावस्थ मंगल वक्री , नीच राशिस्थ (कर्क का) अथवा शुत्रक्षेत्री (मिथुन अथवा कन्या राषि का ) अथवा अस्तंगत हो तो वह अनिष्ट कारक नहीं होता.
7 .जन्मकुण्डली में मंगल यदि द्वितीय भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि का हो द्वादष भाव में वृष अथवा कर्क राशि का हो चतुर्थभाव में में मेष अथवा वृच्श्रिक राशि का हो सप्तम भाव में मकर अथवा कर्क राशि का हो एवं अष्टम भाव में धनु अथवा मीन राशि का हो , इनके अतिरिक्त किसी भी अनिष्ट स्थान में कुम्भ अथवा सिंह राशि का हो तो ऐसे में मंगल का दोष नहीं लगता.
8 .जिसकी जन्मकुण्डली के पंचम, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम अथवा द्वादश स्थान में मंगल बैठा हो उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए , परन्तु यदि वह मंगल , बुध और गुरू से युक्त हो अथवा इन ग्रहों के द्वारा दृष्ट हो तो दोष का परिहार हो जाता है.
9 .शुभ ग्रहों से संबंधित मंगल अशुभकारक नहीं होता . कर्क लग्न में स्थित मंगल कभी भी दोषी नहीं होता. यदि मंगल अपनी नीच राशि अथवा राशि शुत्र राशि (3/6) का हो अथवा अस्तंगत हो तो वह शुभ अशुभ कोई फल नहीं देता.
11 .मंगली दोष वाली कन्या मंगली दोष वाले वर को देने से मंगली दोष नहीं लगता तथा कोई अनिष्ट भी नहीं होता. ऐसा संबंध दाम्पत्य सुख की वृध्दि भी करता है.
12 .यदि वर कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में लग्र, चंद्रमा अथवा शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम एवं द्वादष इन छः स्थानों में से किसी भी एक भाव में मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो (अर्थात वर की कुण्डली में जहां बैठा हो , वधू की कुण्डली में भी उसी जगह पर बैठा हो) तो मंगल दोष नहीं रहता तथा ऐसे स्त्री पुरूष का दाम्पत्य- जीवन चिरस्थायी होता है , साथ ही धन धान्य पुत्र पौत्रादि की अभिवृध्दि भी होती है. परन्तु वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्मकुण्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो (दूसरे की न हो ) तो उसका सर्वथा विपरीत -फल समझाना चाहिए अर्थात वह स्थिति दोषपूर्ण होगी . यदि मंगल अशुभ भावों में स्थित हो तो विवाह नहीं करना चाहिए , पंरतु यदि बहुत गुण मिलते हो तो तथा वर – कन्या दोनों ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ रहता है.
13 .कन्या की कुण्डली में मंगल दोष है और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है.
14 . यदि जन्मांग में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है.
15. मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है.
16 . कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है.
17 . लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है.
18 . मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त होता है.
19 . आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है. ऐसा कहा जाता है किन्तु अनुभव में आया है कि मंगल अपना कुप्रभाव प्रकट करता ही है.
20 . आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है.
21 . कुछ ज्योतिर्विद कहते हैं कि मंगल गुरु से युत या दृष्ट हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है किन्तु आधुनिक शोध के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुरु की राशि में संस्थित मंगल अत्यंत कष्टकारक है, मंगल दोष से दूषित जन्मांगों का जन्मपत्री मिलान करके मंगल दोष परिहार जहां तक संभव हो करके विवाह करें तो दाम्पत्य जीवन सुखद होता है. वृश्चिक राशि में न्यून किन्तु मेष राशि का मंगल प्रबल घातक होता है. कन्या के माता-पिता को घबराना नहीं चाहिए. हमारे धर्मशास्त्रों ने व्रतानुष्ठान, मंत्र प्रयोग द्वारा मंगल दोष को शांत करने का उपाय बताये गए है
22. यदि मंगल चतुर्थ अथवा सप्तम भावस्थ हो तथा क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो एवं इन भावों में मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है. किन्तु भगवान रामजी की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव में उच्च के मंगल ने राजयोग तो दिया किन्तु सीताजी से वियोग भी हुआ,जबकि मंगल पर गुरु की दृष्टि थी.
23. कुण्डली मिलान में यदि मंगल प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मांग में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है.
24. चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है.
25. द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है.
26. वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है.
27.ऐसा कहा जाता है कि आयु के 28वें वर्ष के पश्चात मंगल दोष क्षीण हो जाता है। आचार्यों ने मंगल-राहु की युति को भी मंगल दोष का परिहार बताया है। यदि मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
28.कुण्डली मिलान में यदि मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में हो व द्वितीय जन्मकुंडली में इन्हीं भावों में से किसी में शनि स्थित हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। चतुर्थ भाव का मंगल वृष या तुला का हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
29.द्वादश भावस्थ मंगल कन्या, मिथुन, वृष व तुला का हो तो मंगल दोष निरस्त हो जाता है। वर की कुण्डली में मंगल दोष है व कन्या की जन्मकुण्डली में मंगल के स्थानों पर सूर्य, शनि या राहु हो तो मंगल दोष का स्वयमेव परिहार हो जाता है।
30.ऐसी मान्यता अमूमन प्रचलन में है की जिस कन्या की जन्मकुंडली में मंगल दोष होता है, उसका विवाह मंगल दोष से ग्रसित वर से किया जाय तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।  कन्या की कुण्डली में मंगल दोष हो और वर की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि हो तो मंगल दोष का परिहार स्वयंमेव हो जाता है।
31.यदि जन्मकुंडली में मंगल दोष हो किन्तु शनि मंगल पर दृष्टिपात करे तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है। मकर लग्न में मकर राशि का मंगल व सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं रहता है।
32.कर्क व सिंह लग्न में भी लग्नस्थ मंगल केन्द्र व त्रिकोण का अधिपति होने से राजयोग देता है, जिससे मंगल दोष निरस्त होता है। लग्न में बुध व शुक्र हो तो मंगल दोष निरस्त होता है। मंगल अनिष्ट स्थान में है और उसका अधिपति केद्र व त्रिकोण में हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
33.यदि वर -कन्या दोनों की जन्मकुण्डली में लग्र, चंद्रमा अथवा शुक्र से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ ,सप्तम , अष्टम एवं द्वादष – इन छः स्थानों में से किसी भी एक भाव में मंगल एक जैसी स्थिति में बैठा हो (अर्थात वर की कुण्डली में जहां बैठा हो , वधू की कुण्डली में भी उसी जगह पर बैठा हो) तो मंगल दोष नहीं रहता तथा ऐसे स्त्री – पुरूष का दाम्पत्य- जीवन चिरस्थायी होता है , साथ ही धन धान्य पुत्र – पौत्रादि की अभिवृध्दि भी होती है। परन्तु वर कन्या में से केवल किसी एक की जन्मकुण्डली में ही उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो (दूसरे की न हो ) तो उसका सर्वथा विपरीत -फल समझाना चाहिए अर्थात वह स्थिति दोषपूर्ण होगी । यदि मंगल अशुभ भावों में स्थित हो तो विवाह नहीं करना चाहिए , पंरतु यदि बहुत गुण मिलते हो तो तथा वर – कन्या दोनों ही मंगली हो तो विवाह करना शुभ रहता है।
=========================================================
मंगल दोष ज्योतिष के अनुसार वह स्थिति है जब  मंगल ग्रह वैदिक लग्न कुंडली के अनुसार 1, 4, 7, 8 या 12 वें घर में होता है। इस स्थिति में पैदा हुआ व्यक्ति मांगलिक होता है। कुछ अंधविश्वासी लोगों द्वारा माना जाता है कि यह स्थिति शादी के लिए विनाशकारी हो सकती है, इससे असुविधा,रिश्तों में तनाव हो सकता है, अलगाव और तलाक के लिए अग्रणी है। और कुछ मामलों में यह पति या पत्नी की असामयिक मौत का कारण मानी जाती है। इस परिस्थिति के लिए मंगल ग्रह की प्रकृति को जिम्मेदार ठहराया गया है। यदि दो मांगलिक शादी कर रहे हैं, तब एक दूसरे की ग्रहदशा का नकारात्मक प्रभाव रद्द किया जा सकता हैं। हालांकि वैदिक ज्योतिष में मंगल ग्रह अकेला ऐसा ग्रह नहीं है, जो संबंधों को प्रभावित करता है। इन प्रभावों को समग्र ज्योतिष संगतता के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। 

एक धारणा यह है कि एक एकल मांगलिक शादी के नकारात्मक परिणामों को रद्द किया जा सकता है। अगर मांगलिक पहले एक कुंभ विवाह करे जिसमें मांगलिक पहले एक केले के पेड़, एक पीपल के पेड़, या विष्णु की एक मूर्ति के साथ विवाह करे। कुछ का मानना है कि केवल एक मांगलिक का अन्य मांगलिक के साथ विवाह होना चाहिये।क्योंकि दो नकारात्मक एक दूसरे को रद्द करके एक सकारात्मक प्रभाव बनाते है। यद्यपि ऐसी पूजा है जो कि मांगलिक और गैर-मांगलिक के एक दूसरे से शादी करने के लिए अनुमति का निर्माण करती है। व्यक्तियों की एक बढ़ती हुई संख्या जीवन साथी के चयन के दौरान वैज्ञानिक अवधारणाओं पर जोर दे रही हैं इसके साक्ष्य आपको आनलाइन विवाह ब्लाग से मिल सकते है।
------------------------------------------------------------------------------
किन परिस्थितियों के तहत मंगल दोष दोष नहीं माना जाता हैं?

यदि मंगल कर्क राशि में नीच घर में हो।
यदि मंगल मिथुन या कन्या राशि के दुश्मन घर में हो।
यदि मंगल सूर्य के पास अस्तंगत।
यदि मंगल मेष राशि के पहले घर में हो।
यदि मंगल वृश्चिक के चौथे घर में हो।
यदि मंगल मकर राशि के सातवें घर में हो।
यदि मंगल सिंह राशि के आठवें घर में हो।
यदि मंगल धनु राशि के बारहवें घर में हो।

विशेष:--- किसी अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से चर्चा करके ही मंगलदोष निवारण के उपाय -पूजन करना चाहिए। मंगल की पूजा का विशेष महत्व होता है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है।

जानिए मंगलदोष शांति के उपाय

जानिए मंगलदोष शांति के उपाय: ----

वैसे तो हमारे सभी वैदिक ग्रंथों और ज्योतिषीय ग्रंथों में मंगलदोष निवारण के अनेकानेक उपाय बताये गए हैं  जैसे---

1 लाल पुष्पों को जल में प्रवाहीत करें।
2 मंगलवार को गुड़ व मसूर की दाल जरूर खायें।
3 मंगलवार को रेवडि़या पानी में विसर्जित करें।
4 आटे के पेड़े में गुड व चीनी मिलाकर गाय को खिलायें।
5 मीठी रोटियों का दान करें।
6 ताँबे के तार में डाले गये रूद्राक्ष की माला धारण करें।
7 मंगलवार को शिवलिंग पर जल चढ़ावे।
8 बन्दरों को मीठी लाल वस्तु जैसे - जलेबी, इमरती, शक्करपारे आदि खिलावे।
9 शिवजी या हनुमान जी के नित्य दर्शन करें और हनुमान चालीसा या महामृत्युन्जय मंत्र की रोजाना कम से कम एक माला का जाप करे। हनुमान जी के मन्दिर में दीपदान करें तथा बजरंग बाण का प्रत्येक मंगलवार को पाठ करे।
10 गेहूँ , गुड़, मंूगा, मसूर, तांबा, सोना, लाल वस्त्र, केशर - कस्तूरी, लाल पुष्प , लाल चंदन , लाल रंग का बैल, धी, पीले रंग की गाय, मीठा भोजन आदि लाल वस्तुओं का दान मंगलवार मध्यान्ह में करें। दीन में मंगल यंत्र का पूजन करें। मंगलवार को लाल वस्त्र पहने।
11 शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से 21 या 45 मंगलवार तक अथवा पूरे वर्ष मंगलवार का व्रत करें। गुड़ का बना हलवा भोग लगाने व प्रसाद बाँटने के काम में लाये और सांयकाल को वही प्रसाद ग्रहण करें।
12 जिस मंगलवार को व्रत करें उस दिन बिना नमक का भोजन एक बार विधिवत मंगल की पूजा अर्चना कर ग्रहण करें।
13 पति-पत्नि दोनों एक साथ रसोई में बैठकर भोजन करें।
14 स्नान के बाद सूखे वस्त्र को हाथ लगाने से पहले पूर्व दिशा में मुँह करके सूर्य का अर्ध देकर प्रणाम करें। (सूर्य देव दिखाई दे या न दे)
15 शयन कक्ष में पलंग पर काँच लगे हो तो उन्हें हटा दे, मंगल का कोप नहीं रहेगा अन्यथा उस काँच में पति - पत्नि का जो भी अंग दिखाई देगा वह रोगग्रस्त हो जायेगा।
16 मन का कारक चन्द्रमा होता हैं जिसके कारण मन को चंचलता प्राप्त होती हैं। पति-पत्नि के बीच जब भी वाद-विवाद हो, उग्रता आने लगे तब दोनों में से कोई एक उस स्थान से हट जायें, चन्द्र संतुलित रहेगा।
17 शयन कक्ष में यदि रोजाना पति-पत्नि के बीच वाद-विवाद, झगड़े जैसी घटनाएँ होने लगे तो जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में पड़े ग्रह की शान्ति करावें।
18 दाम्पत्य की दृष्टि से पत्नि को अपना सारा बनाव श्रृगांर (मेकअप) आदि सांयकाल या उसके पश्चात करना चाहिए जिससे गुरू , मंगल और सूर्य अनुकूल होता हैं। दीन में स्त्री जितना मेकअप करेगी पति से उसकी दूरी बढ़ेगी।
19 पति-पत्नि के बीच किसी मजबूरी के चलते स्वैच्छिक दूरी बढ़े तो पति-पत्नि दोनों को गहरे पीले रंग का पुखराज तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।
20 यह बात ध्यान रखें कि वैवाहिक जीवन में मंगल अहंकार देता हैं स्वाभिमान नहीं। दाम्पत्य जीवन की सफलता हेतु दोनंों की ही आवश्यकता नहीं होती हैं। पाप ग्रहों का प्रभाव दाम्पत्य को बिगाड़ देता हैं। ऐसी स्थिती में चन्द्रमा के साथ जिस पाप ग्रह का प्रभाव हो उस ग्रह की शांति कराने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता हैं। शुक्ल पक्ष मेें पति-पत्नी चाँदनी रात में चन्द्र दर्शन कर, चन्द्रमा की किरणों को अपने शरीर से अवश्य स्पर्श करवावें।
21 बाग - बगीचा, नदी , समुद्र, खेत, धार्मिक स्थल एवं पर्यटन स्थलों आदि पर पति - पत्नी साथ जायें तो श्रेष्ट होगा। इससे गुरू व शुक्र प्रसन्न होगें, इसके विपरीत कब्रिस्तान , कोर्ट - कचहरी , पुलिस थाना , शराब की दुकान , शमशान व सुना जंगल आदि स्थानों पर पति-पत्नी भूलकर भी साथ न जायें।
22 मंगल के कोप के कारण बार - बार संतान गर्भ में नष्ट होने से पति-पत्नी के बीच तनाव , रोग एवं परेशानियां उत्पन्न होती हैं ऐसी स्थिति में पति - पत्नी को महारूद्र या अतिरूद्र का पाठ करना चाहिए।
23 मंगल की अशुभ दशा , अन्तर्दशा में पति - पत्नी के बीच कलह , वाद - विवाद व अलगाव सम्भावित हैं। ऐसी स्थिती में गणपति स्त्रोत , देवी कवच , लक्ष्मी स्त्रोत , कार्तिकेय स्त्रोत एवं कुमार कार्तिकेय की नित्य पूजा अर्चना एवं पाठ करना चाहिए।
24 जिन युवक-युवतियों का विवाह मंगल दोष के कारण नहीं हो रहा हैं, उन्हें प्रतीक स्वरूप विवाह करना चाहिए। जिनमें कन्या का प्रतीक विवाह भगवान विष्णु से या सालिग्राम के पत्थर या मूर्ति से कराया जाता हैं। इसी प्रकार पुरूष का प्रतीक विवाह बैर की झाडि़यों से कराया जाता हैं।
25 विवाह के इच्छुक मांगलिक युवक-युवतियों को तांबंे का सिक्का पाकेट या पर्स में रखना चाहिए। तांबें की अंगुठी अनामिका अंगुली में धारण करे, तांबे का छल्ला साथ रखें, रात्रि में तांबे के पात्र में जल भरकर रखें व प्रातः काल उसे पीयें।
26 प्रतिदिन तुलसी को जल चढ़ाने और तुलसी पत्र का सेवन करने से मंगल के अनिष्ठ शांत होते हैं।
27 अपना चरित्र हमेशा सही रखें । झूठ नहीं बोले । किसी को सताए नहीं । झूठी गवाही कभी भी ना देवे । दक्षिण दिशा वाले द्वार में न रहें । किसी से ईष्र्या, द्वेश भाव न रखे । यथा शक्ति दान करें ।
28 मंगलवार के दिन सौ गा्रम बादाम दक्षिणमुखी हनुमानजी के यहां ले जावे । उनमें से आधे बादाम मंदिर में रख देवे और आधे बादाम घर लाकर पूजा स्थल पर रखें । बादाम खुले में ही रखे । यह जब तक रखे जब तक की आपकी मंगल की महादशा चलती हैं ।
29 मूंगा या रूद्राक्ष की माला हमेशा अपने गले में धारण करें ।
30 आँखो में सुरमा लगावें । जमीन पर सोयें । गायत्री मंत्र का जाप संध्याकाल में करें ।
31 नित्य सुबह पिता अथवा बड़े भाई के चरण छुकर आशीर्वाद लेवें ।
32 मंगल की शांति हेतु मूंगा रत्न धारण करना चाहिए इसके लिए चांदी की अंगुठी में मूंगा जड़वाकर दायें हाथ की अनामिका में धारण करना चाहिए। मंूगे का वजन 6 रत्ती से अधिक होना चाहिए। धारण करने से पूर्व मूंगे  को गंगाजल, गौमूत्र अथवा गुलाब जल से स्नान करवाकर शुद्ध करें तत्पश्चात विधि अनुसार धारण करें।
33 जो जातक मूंगा धारण नहीं कर सकते उन्हें तीनमुखी रूद्राक्ष धारण कराना चाहिए । तीन मुखी रूद्राक्ष को लाल धागे में गुथकर धूपित करके, मंगलवाल के दिन गले या दाहिने हाथ में धारण करें । इसके प्रभाव से उन्हें मंगल शांति में सफलता मिलती हैं ।
34 क्रुर व उग्र होते हुए भी सौम्य ग्रहों की युति से मंगल विशेष सौम्य फल प्रदान करता हैं । चन्द्र व मंगल की युति आकस्मिक धनप्राप्ति, शनि मंगल की युति डुप्लीकेट सामान बनाने व नकल करने में माहिर बनाता हैं, ऐसा व्यक्ति कार्टूनिस्ट, पोट्रेट आर्टिस्ट व मुखौटे बनाने में निपुण हो सकता हैं । शुक्र व मंगल की युति फोटोग्राफी, सिनेमा तथा चित्रकारी आदि की योग्यता भी देता हैं । बुध के साथ युति होने पर जासूस का वैज्ञानिक और मांगलिक प्रभाव भी नष्ट करता हैं, किन्तु जिन घरों पर वह दृष्टि डालता हें वहां अवश्य ही हानि करने वाला होता हैं । कुण्डली में सातवां घर मंगल का ही माना जाता हैं क्योकिं यह मंगल की उच्च राशि हैं । अतः सातवां घर मंगल की स्वराशि का घर कहलाता हैं ।
35 पुत्रहीनता तथा ऋणग्रस्तता दूषित मंगल की ही देन होती हैं । स्त्रियों में कामवासना का विशेष विचार भी मंगल से किया जाता हैं । 
----लगन दूसरे भाव चतुर्थ भाव सप्तम भाव और बारहवें भाव के मंगल के लिये वैदिक उपाय बताये गये है,सबसे पहला उपाय तो मंगली जातक के साथ मंगली जातक की ही शादी करनी चाहिये। लेकिन एक जातक मंगली और उपरोक्त कारण अगर मिलते है तो दूसरे मे देखना चाहिये कि मंगल को शनि के द्वारा कहीं द्रिष्टि तो नही दी गयी है,कारण शनि ठंडा ग्रह है और जातक के मंगल को शांत रखने के लिये काफ़ी हद तक अपना कार्य करता है,दूसरे पति की कुंडली में मंगल असरकारक है और पत्नी की कुंडली में मंगल असरकारक नहीं है तो शादी नही करनी चाहिये। 
----वैसे मंगली पति और पत्नी को शादी के बाद लालवस्त्र पहिन कर तांबे के लोटे में चावल भरने के बाद लोटे पर सफ़ेद चन्दन को पोत कर एक लाल फ़ूल और एक रुपया लोटे पर रखकर पास के किसी हनुमान मन्दिर में रख कर आना चाहिये। 
---चान्दी की चौकोर डिब्बी में शहद भरकर रखने से भी मंगल का असर कम हो जाता है,
---घर में आने वाले महिमानों को मिठाई खिलाने से भी मंगल का असर कम रहता है,मंगल शनि और चन्द्र को मिलाकर दान करने से भी फ़ायदा मिलता है,
---मंगल से मीठी शनि से चाय और चन्द्र से दूध से बनी पिलानी चाहिये।

मंगल के प्रभाव से होने वाले रोगादि रक्त-सम्बन्धी रोग, पित्त विकार, मज्जा विकार, नेत्र विकार, जलन, तृष्णा, मिर्गी व उन्माद आदि मानसिक रोग, चर्म रोग, अस्थिभ्रंश, आॅपरेशन, दुर्घटना, रक्तस्त्राव व घाव, पशुभय, भूत-पिशाच के आवेश से होने वाली पीड़ाएं आदि विशेष हैं । निर्बल होने से यह जीवन शक्ति उत्साह व उमंग का नाश करता हैं 






----------------------------------------------------------------------------
जानिए मंगल दोष से होने वाली परेशानिया -----

---आजकल ये भ्रम हो गया हैं  की मंगली होने का मतलब मंगल दोष होता है
---मंगल दोष 28 वे वर्ष में अपने आप समाप्त हो जाता है और बिना कुंडली मिलाये शादी करा देनी चाहिए ये गलत धारणा है
---मंगल दोष वाले माता पिता की संतान का 5 वर्ष की आयु तक बेहद खास  ध्यान रखने की जरूरत होती
है क्यूंकि उसका immune सिस्टम काफी कमजोर होगा इस बात की बहुत संभावना होती है...
---मंगल दोष वाले लोग विधुर /विधवा हो जायेंगे ये एक मिथ्या धारणा है...
---मंगली होने का ये मतलब नहीं है की मंगल दोष होगा
---मंगल दोष के कारण लोगो के प्रेम सम्बन्ध टूट जाते है और ये दुःख दे के टूटते है,पिता व भाई की ख़ुशी में कमी होती है
---यदि बृहस्पति मजबूत हुआ तो मंगल दोष वाले love मैरिज के बाद भी सम्बन्ध टूट जाने वाली situation आ सकती है
---मंगल दोष जब बहुत जादा प्रभावित करता है तो लोग शादी के लिए आपको approach करेंगे लेकिन जैसे ही आप कही बात करोगे तो वो बात टूट जाएगी आपको कोई response नहीं देगा लोग आपके फ़ोन का उत्तर तक
नहीं देंगे ,रिश्ते नहीं आएंगे आएंगे भी तो टूट जायेंगे
----यदि रिश्ते आये भी तो आपकी तरफ से कोशिश करने से बात नहीं बनेगी,किसी ख़राब पार्टनर के साथ जीवन जीने से अच्छा है की अकेले ही रहा  जाये
---ज्योतिष के according 70% लोग मंगल दोष से प्रभावित या पीड़ित मिलेंगे,बिना सोचे समझे या जाने ज्योतिष के फंडे न लगाये सिर्फ लैपटॉप ले के सॉफ्टवेयर से कुंडली बना लेने से राशी भाव और गृह देख लेने मात्र से कोई ज्योतिषी नहीं हो जाता उसके लिये गहरे ज्ञान की आवश्यकता भी होती है...
---पति पत्नी में मंगल दोष हो तो वो एक दूसरे की इज्जत नहीं करेंगे...
----मंगल की छाया या आंशिक मंगल कुछ लोग बोलते है ऐसा नहीं होता...
---मंगल दोष से प्रभावित लोगो को लम्बे समय तक (या सही शब्दों में जीवन पर्यंत उपाय )
करने चाहिए ...खून में heamoglobin कम होने पे हरी मिर्च खाए ये आपकी मदद करती है
---कुंडली में सिर्फ मंगल की विशेष positions (1,2,4,7,8) पे होने के कारण ही मंगल दोष नहीं लगता
---मंगली होना और मंगल दोष होना दो अलग अलग चीज़े है...
---यदि किसी की कुंडली में मंगल दोष है तो प्रेम संबंधो में सावधान रहने की जरूरत है
अधिकतर ऐसे सम्बन्ध चरित्र पे दाग लग के टूट जाते है...misconception जो मंगली/मंगल दोष से प्रभावित होते है उनका विवाह नहीं होता..मंगल दोष वाले माता पिता की संतान को कष्ट होता है (इससे रिकवर किया जा सकता है )..मंगल शारीरिक शक्ति को denote करता है यदि कमजोर होगा तो शारीरिक उर्जा कम होगी,ऐसे लोगो की संतान बीमार बहुत जल्दी जल्दी होगी ,यदि आपको मंगल दोष हो तो ऐसे  माता पिता अपने घर का माहौल शांत रखे

मंगल दोष परिहार के कुछ प्रभावी एवं लाभकारी उपाय---

मंगल दोष परिहार के कुछ प्रभावी एवं लाभकारी उपाय----

मंगल दोष की वजह से विवाह में देरी हो तो ये उपाय जरूर करने चाहिए। माना जाता है कि इन उपायों को करने से  विवाह में आ रही बाधाएं जल्द दूर होती हैं और मनचाही कन्या से विवाह होता है।

जिन जातकों की जन्म कुंडली के 1,4,7 और 12 वें भाव में मंगल होता है, उन्हें मांगलिक दोष होता है। इस दोष के कारण जातक को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे उनके भूमि से संबंधित कार्यो में बाधा आती है। विवाह में विलंब होता है। ऋण से मुक्ति नहीं मिलती, वास्तुदोष उत्पन्न हो सकता है आदि- आदि। इन सब दोषों के शमन के लिए अवन्तिका यानि उज्जैन में मंगल दोष निवारण के लिए विशेष पूजा कराने का विधान है। मंगल ग्रह की जन्म स्थली उज्जैन में पूजा करने से दोष समाप्त हो जाता है।

मंगल की शांति के लिए अवन्तिका में भात पूजा कराने का विधान है।  मंगल की क्रूर दृष्टि यहां पूजा करने से कृपा दृष्टि में बदल जाती है। यह पूजा उज्जैन में स्थित श्री अंगारेश्वर महादेव मंदिर में पुरोहितों द्वारा संपन्न कराई जाती है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का दही भात का लेप करने से अग्नि शांत(मांगलिक दोष निवारण) होती है। इस प्रक्रिया में भगवान गणपति पूजन, माताजी पूजन, संकल्प, भगवान शिव का अभिषेक, पंचामृत पूजा, भात का पूजन(पंचामृत में उबले हुए भात मिलाकर) शिवलिंग पर लेप किया जाता है। 










उज्जैन के 84 मंदिरों में से 43वें मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित अंगारेश्वर महादेव मंदिर की प्राचीनता के बारे में यहाँ के पुजारी पं मनीष उपाध्याय बताते हैं कि अंगारक को तपस्या करने का निर्देश भगवान शिव ने दिया था। साथ ही यह भी बताया कि अवन्तिका के महाकाल वन मे खगरता के संगम पर गंगेश्वर के उत्तर में ब्रह्माजी द्वारा स्थापित शिवलिंग है। जिसकी पूजा देवता गंधर्व करते हैं । अंगारक ने यहीं सोलह हजार वर्ष तक तप किया। 

उपाध्याय के अनुसार पहले क्षिप्रा का पाट चौड़ा था। इसलिए इस शिवलिंग का पूजन नहीं हो पाता था। वर्ष  1973 की बाढ़ में मंदिर ध्वस्त हो गया था। इसका पुनर्निमाण सन 1980 में हुआ। स्कंध पुराण , अग्नि पुराण,  के रूप में गंगारक का ही उल्लेख मिलता है तथा गणेश पुराण मे अंगारक स्तोत्र यहां मंगल दोष निवारणार्थ भात पूजा और अन्य पूजा संपन्न होती हैं। शांत प्रिय और एकाग्र मन से अंगारेश्वर महादेव की पूजा करने पर मनोकामनाएं पूरी होती हेैं। मंगल शांति होने से लाभ मिलता है। 

इस पूजा के प्रभाव से भूमि के अटके काम, ऋण मुक्ति, वास्तुदोष, संतान, विवाह में मांगलिक दोष से व्यवधान, व्यापार में रूकावटें आदि का शमन हो जाता हैं ।

----मंगल दोष शांति के विशेष दान :---- 

शास्त्रानुसार लाल वस्त्र धारण  करने से व किसी ब्रह्मण अथवा क्षत्रिय को मंगल की निम्न वास्तु का दान करने से जिनमे -  गेहू, गुड, माचिस, तम्बा, स्वर्ण, गौ, मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य तथा भूमि दान करने से मंगल दोष दूर होता है | लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल जनित अमंगल दूर होता है |
----- तुलसी के पौधे को (रविवार को छोड़कर) हर शाम प्रणाम कर उसके पास घी का दीपक जलाएं। तुलसी के मनकों की माला पहनें और भगवान कृष्ण का श्रद्धा से पूजन कीजिए। कृष्ण की एक तस्वीर तुलसी के पौधे के पास भी स्थापित कीजिए।
----अगर कुंडली में मंगल के कारण विवाह में विलंब हो रहा है तो जेब या पर्स में चांदी का चौकोर टुकड़ा सदा अपने साथ रखें। यह मंगल दोष के प्रभाव को कम कर आपका कार्य सिद्ध कर देगा।
-----जिन लोगों की कुंडली मांगलिक होती है उन्हें प्रति मंगलवार मंगलदेव के निमित्त विशेष पूजन करना चाहिए। मंगलदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं जैसे लाल मसूर की दाल, लाल कपड़े का दान करना चाहिए। 
----जिन लोगों की कुंडली में मंगलदोष है उनके द्वारा प्रतिदिन या प्रति मंगलवार को शिवलिंग पर कुमकुम चढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल गुलाब अर्पित करें। इस प्रकार भी मंगल दोष की शांति हो सकती है।
------शुक्ल पक्ष के मंगलवार को चांदी का एक टुकड़ा लेकर उसे जमीन में गड्ढा खोदकर रख दें। अब उस पर पानी डालें और थोड़ी मिट्टी भी डाल दें। तत्पश्चात इस पर तुलसी का पौधा लगा दें। इस पौधे का ध्यान रखें और नियमित जल आदि डालें। यह उपाय भी मंगल के कुप्रभाव को दूर कर विवाह में बाधाओं का निवारण करता है।
----शास्त्रों के अनुसार मंगल दोष का निवारण अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) में ही हो सकता है। अन्य किसी स्थान पर नहीं। उज्जैन ही मंगल देव का जन्म स्थान है और मंगल के सभी दोषों का निवारण यहीं किए जाने की मान्यता है। मंगलदेव के निमित्त भात पूजा की जाती है। जिससे मंगल दोषों की शांति होती है।
---अगर किसी युवती के विवाह में मंगल की वजह से बाधा आ रही है तो शुक्ल पक्ष के मंगलवार को भगवान राम-सीता व हनुमानजी के चित्र की स्थापना करें और दीपक जलाकर सुंदरकांड का पाठ करें। 
---बंदरों व कुत्तों को गुड व आटे से बनी मीठी रोटी खिलाएं |
----- मंगल चन्द्रिका स्तोत्र का पाठ करना भी लाभ देता है |
----- माँ मंगला गौरी की आराधना से भी मंगल दोष दूर होता है |
----- कार्तिकेय जी की पूजा से भी मंगल दोष के दुशप्रभाव में लाभ मिलता है |
------ मंगलवार को बताशे व गुड की रेवड़ियाँ बहते जल में प्रवाहित करें |
----- आटे की लोई में गुड़ रखकर गाय को खिला दें |
----- मंगली कन्यायें गौरी पूजन तथा श्रीमद्भागवत के 18 वें अध्याय के नवें श्लोक का जप अवश्य करें |
---- मांगलिक वर अथवा कन्या को अपनी विवाह बाधा को दूर करने के लिए मंगल यंत्र की नियमित पूजा अर्चना करनी चाहिए।
---- मंगल दोष द्वारा यदि कन्या के विवाह में विलम्ब होता हो तो कन्या को शयनकाल में सर के नीचे हल्दी की गाठ रखकर सोना चाहिए और नियमित सोलह गुरूवार पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना चाहिए |
----- मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से व हनुमान जी को सिन्दूर एवं चमेली का तेल अर्पित करने से मंगल दोष शांत होता है |
----- महामृत्युजय मंत्र का जप हर प्रकार की बाधा का नाश करने वाला होता है, महामृत्युजय मंत्र का जप करा कर मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक व दांपत्य जीवन में मंगल का कुप्रभाव दूर होता है |
----- यदि कन्या मांगलिक है तो मांगलिक दोष को प्रभावहीन करने के लिए विवाह से ठीक पूर्व कन्या का विवाह शास्त्रीय विधि द्वारा प्राण  प्रतिष्ठित श्री विष्णु प्रतिमा से करे, तत्पश्चात विवाह करे |
----- यदि वर मांगलिक हो तो विवाह से ठीक पूर्व वर का विवाह तुलसी के पौधे के साथ या जल भरे घट (घड़ा) अर्थात कुम्भ से करवाएं। 
----यदि मंगली दंपत्ति विवाहोपरांत लालवस्त्र धारण कर तांबे के पात्र में चावल भरकर एक रक्त पुष्प एवं एक रुपया पात्र पर रखकर पास के किसी भी हनुमान मन्दिर में रख आये तो मंगल के अधिपति देवता श्री हनुमान जी की कृपा से उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखी बना रहता है |
---मांगलिक-दोष दूर करते हैं मंगल के यह  21 नाम। निम्न 21 नामों से मंगल की पूजा करें---- 
1. ऊँ मंगलाय नम: 
2. ऊँ भूमि पुत्राय नम:
3. ऊँ ऋण हर्वे नम: 
4. ऊँ धनदाय नम: 
5. ऊँ सिद्ध मंगलाय नम: 
6. ऊँ महाकाय नम:
7. ऊँ सर्वकर्म विरोधकाय नम: 
8. ऊँ लोहिताय नम:
9. ऊँ लोहितगाय नम:
10. ऊँ सुहागानां कृपा कराय नम:
11. ऊँ धरात्मजाय नम: 
12. ऊँ कुजाय नम: 
13. ऊँ रक्ताय नम: 
14. ऊँ भूमि पुत्राय नम: 
15. ऊँ भूमिदाय नम: 
16. ऊँ अंगारकाय नम: 
17. ऊँ यमाय नम: 
18. ऊँ सर्वरोग्य प्रहारिण नम: 
19. ऊँ सृष्टिकर्त्रे नम: 
20. ऊँ प्रहर्त्रे नम: 
21. ऊँ सर्वकाम फलदाय नम: 

विशेष:--- किसी अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से चर्चा करके ही श्री अंगारेश्वर महादेव पर मंगलदोष निवारण के उपाय भट पूजन आदि करना चाहिए। मंगल की पूजा का विशेष महत्व होता है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है।
=======================================================
कैसे पहुंचे उज्जैन-----

इंदौर (55 किलोमीटर) निकटतम हवाई अड्डा है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.

इंदौर (55 किलोमीटर)में बस स्टोप है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.

इंदौर (55 किलोमीटर)में रेलवे स्टेशन है. यह भोपाल, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर से जुड़ा है.
---------------------------------------------------------------------------------
क्या करें अगर कुंडली में राहु-मंगल हों साथ-साथ?

ज्योतिष में मंगल और राहु मिल कर अंगारक योग बनाते हैं। लाल किताब में इस योग को पागल हाथी का नाम दिया गया है। अगर यह योग किसी की कुंडली में होता है तो वो व्यक्ति अपनी मेहनत से नाम और पैसा कमाता है। ऐसे लोगों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं।

यह योग अच्छा और बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है। ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली में यह योग होने पर इसकी शांति करवाना चहिए नहीं तो लंबे समय तक परेशानियां बनी रहती हैं। उज्जैन में अंगारेश्वर महादेव मन्दिर में मंगल-राहु अंगारक योग की शांति होती है।
=============================================================
क्या प्रभाव होता है कुंडली के बारह घरों में मंगल-राहु अंगारक योग का?

1- कुंडली के पहले घर में मंगल-राहु अंगारक योग होने से पेट के रोग और शरीर पर चोट का निशान रहता है।

ये उपाय करें- रेवडिय़ां, बताशे पानी में बहाएं।

2- कुंडली के दूसरे भाव में अंगारक योग होने से धन संबंधित उतार चढ़ाव आते हैं। ऐसे लोग धन के मामलों में जोखिम लेने से नहीं घबराते हैं।

ये उपाय करें- चांदी की अंगूठी उल्टे हाथ की लिटील फिंगर में पहनें।

3- जिन लोगों की कुंडली के तीसरे भाव में ये योग होता उनको भाइयों और मित्रों से सहयोग मिलता है और वो लोग मेहनत से पैसा, मान सम्मान कमाते हैं।

ये उपाय करें- घर में हाथी दांत रखें।

4- कुंडली के चौथे भाव में ये योग होने से माता के सुख में कमी आती है और भूमि संबंधित विवाद चलते रहते हैं।

ये उपाय करें- सोना, चांदी और तांबा तीनों को मिलाकर अंगूठी पहनें।

5- कुंडली के पांचवें भाव में अंगारक योग योग जुए, सट्टे, लॉटरी और शेयर बाजार में लाभ दिलाता है।

ये उपाय करें- रात को सिरहाने पानी का बर्तन भरकर रखें और सुबह उठते ही पेड़-पौधों में डालें।

6- जिन लोगों की कुंडली के  छठे घर में मंगल-राहु एक साथ होते हैं ऐसे लोग ऋण लेकर उन्नति करते हैं। अच्छे वकील और चिकित्सक भी इसी योग के कारण बनते हैं।

ये उपाय करें- कन्याओं को दूध और चांदी का दान दें।

7- कुंडली के सातवें भाव में अंगारक योग साझेदारी के काम में फायदा दिलाता है।

ये उपाय करें- चांदी की ठोस गोली अपने पास रखें।

 8- जिन लोगों की कुंडली के  आठवें घर में अंगारक योग बनता है ऐसे लोगों को वसीयत में सम्पत्ति मिलती है। ऐसे लोगों को ऐक्सीडेंट का खतरा होता है।

ये उपाय करें- एक तरफ सिकी हुई मीठी रोटियां कुत्तों को डालें।

9- कुंडली के नवें घर में ये योग बनता है तो ऐसे लोग कर्मप्रधान होते है ऐसे लोगों की किस्मत ज्यादातर साथ नहीं देती। ये लोग कुछ रूढ़ीवादी होते हैं।

ये उपाय करें- मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं।

10- दसवें भाव में अंगारक योग जिन लोगों की कुंडली में होता है वो लोग रंक से राजा बन जाते हैं।

ये उपाय करें- मूंगा रत्न धारण करें।

11- कुंडली के लाभ भाव यानि ग्यारहवें भाव में अंगारक योग होने से प्रॉपर्टी से लाभ मिलता है।

ये उपाय करें- मिट्टी के बर्तन में सिन्दूर रख कर, उसे घर में रखें।

12- बारहवें भाव में अंगारक योग होता है उन लोगों का पैसा विदेश में जमा होता है। ऐसे लोग रिश्वत में पकड़ा जाते हैं कभी कभी जेल यात्रा के योग भी बनते हैं।

ये उपाय करें- रोज सुबह थोड़ा शहद खाएं।
=================================================
मंगल से प्रभावित होते हैं मंगली----

 ज्योतिष के अनुसार मंगली लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है। यदि मंगल शुभ हो तो वह मंगली लोगों को मालामाल बना देता है। मंगली व्यक्ति अपने जीवन साथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मंगली जीवन साथी ही पूरा कर सकता है। इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।

कौन होते हैं मंगली?

कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं। इन्हीं दोषों में से एक है मंगल दोष। यह दोष जिस व्यक्ति की कुंडली में होता है वह मंगली कहलाता है। जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 1, 4, 7, 8, 12 वें स्थान या भाव में मंगल स्थित हो तो वह व्यक्ति मंगली होता है।
मंगल के प्रभाव के कारण ऐसे लोग क्रोधी स्वभाव के होते हैं। ज्योतिष के अनुसार मंगली व्यक्ति की शादी मंगली से ही होना चाहिए। यदि मंगल अशुभ प्रभाव देने वाला है तो इसके दुष्प्रभाव से कई क्षेत्रों में हानि प्राप्त होती है। भूमि से संबंधित कार्य करने वालों को मंगल ग्रह की विशेष कृपा की आवश्यकता है।
 मंगल देव की कृपा के बिना कोई व्यक्ति भी भूमि संबंधी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। मंगल से प्रभावित व्यक्ति अपनी धुन का पक्का होता है और किसी भी कार्य को बहुत अच्छे से पूर्ण करता है।
हमारे शरीर में सभी ग्रहों का अलग-अलग निवास स्थान बताया गया है। ज्योतिष के अनुसार मंगल ग्रह हमारे रक्त में निवास करता है।

मंगली लोगों की खास बातें----
मंगली होने का विशेष गुण यह होता है कि मंगली कुंडली वाला व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाता है। कठिन से कठिन कार्य वह समय से पूर्व  ही कर लेते हैं। नेतृत्व की क्षमता उनमें जन्मजात होती है।
ये लोग जल्दी किसी से घुलते-मिलते नहीं परंतु जब मिलते हैं तो पूर्णत: संबंध को निभाते हैं। अति महत्वाकांक्षी होने से इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता है। परंतु यह बहुत दयालु, क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं। गलत के आगे झुकना इनको पसंद नहीं होता और खुद भी गलती नहीं करते।
ये लोग उच्च पद, व्यवसायी, अभिभाषक, तांत्रिक, राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर सभी क्षेत्रों में यह विशेष योग्यता प्राप्त करते हैं। विपरित लिंग के लिए यह विशेष संवेदनशील रहते हैं, तथा उनसे कुछ विशेष आशा रखते हैं। इसी कारण मंगली कुंडली वालों का विवाह मंगली से ही किया जाता है।

ग्रहों का सेनापति है मंगल----
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए हैं जो कुंडली में अलग-अलग स्थितियों के अनुसार हमारा जीवन निर्धारित करते हैं। हमें जो भी सुख-दुख, खुशियां और सफलताएं या असफलताएं प्राप्त होती हैं, वह सभी ग्रहों की स्थिति के अनुसार मिलती है। इन नौ ग्रहों का सेनापति है मंगल ग्रह। मंगल ग्रह से ही संबंधित होते है मंगल दोष। मंगल दोष ही व्यक्ति को मंगली बनाता है।

पाप ग्रह है मंगल---
मंगल ग्रह को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिष में मंगल को अनुशासन प्रिय, घोर स्वाभिमानी, अत्यधिक कठोर माना गया है। सामान्यत: कठोरता दुख देने वाली ही होती है। मंगल की कठोरता के कारण ही इसे पाप ग्रह माना जाता है। मंगलदेव भूमि पुत्र हैं और यह परम मातृ भक्त हैं। इसी वजह से माता का सम्मान करने वाले सभी पुत्रों को विशेष फल प्रदान करते हैं। मंगल बुरे कार्य करने वाले लोगों को बहुत बुरे फल प्रदान करता है।

मंगल के प्रभाव----
मंगल से प्रभावित कुंडली को दोषपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला होता है उसका जीवन परेशानियों में व्यतीत होता है। अशुभ मंगल के प्रभाव की वजह से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं। साथ ही, मंगल के कारण संतान से दुख मिलता है, वैवाहिक जीवन परेशानियों भरा होता है, साहस नहीं होता, हमेशा तनाव बना रहता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ज्यादा अशुभ प्रभाव देने वाला है तो वह बहुत कठिनाई से जीवन गुजरता है। मंगल उत्तेजित स्वभाव देता है, वह व्यक्ति हर कार्य उत्तेजना में करता है और अधिकांश समय असफलता ही प्राप्त करता है।

मंगल का ज्योतिष में महत्व:------ ज्योतिष में मंगल मुकदमा ऋण, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, भूमि, भवन, मकान और माता का कारण होता है। मंगल देश प्रेम, साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता तथा खतरों से सामना करने की ताकत देता है।

मंगल की शांति के उपाय:----- भगवान शिव की स्तुति करें। मूंगे को धारण करें। तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, केशर, कस्तुरी, लाल बैल, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान।
------------------------------------------------------------------------------
विवाह के दौरान इसे दोष के रूप में क्यों माना जाता है?

मंगल ग्रह 1,4,7,8 और 12 वें घर में होने से घर को प्रभावित करता है, इसे मंगल दोष कहा जाता है। मंगल ग्रह एक ऐसा ग्रह है जो आग, बिजली, रसायन, हथियार, आक्रामकता, उच्च ऊर्जा, रक्त, लड़ाई , दुर्घटना आदि का प्रतिनिधि माना जाता है। चलो देखते हैं क्या इन घरों में स्थित मंगल हो रहे प्रभावो के नतीजों का प्रतिनिधि है? घर में जो भी यह स्थित है या इसकी दृष्टि से उस घर पर मंगल के प्रभाव को जीवन के पहलुओं में अनुभव करने के लिए प्रतिनिधित्व करती है|
यदि मंगल 1 घर में है तब वह 1, 4, 7 और 8 वें घर को प्रभावित करेगा। 1 घर व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए व्यक्ति बहुत संयमहीन होता है। 4 घर सदन का प्रतिनिधित्व करता है, व्यक्तियों की वाहन, घर से जुड़ी समस्याओं या जैसे आग, रसायन के कारण दुर्घटना, बिजली आदि की संभावना होती है| और 7 घर वैवाहिक जीवन, और साझेदारी में पति व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए अशांत विवाहित जीवन की संभावना होती है, पति या पत्नी बहुत गर्म स्वभाव प्रकृति के हो तो साझेदारी में नुकसान हो सकता है| 8 घर मौत का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए व्यक्ति के लिए अचानक घातक दुर्घटना की संभावना होती है| बेशक ये बहुत व्यापक दिशानिर्देश हैं| कुंडली के समग्र गुणवत्ता, ग्रहों की शक्ति, आदि ग्रहों के पहलुओं की तरह कई अन्य कोणों से अध्ययन करने की आवश्यकता होती है।
यदि मंगल 4 घर में है तब यह 4 घर में 7, 10 और 11 घर को प्रभावित करेगा | हमने 4 और 7 घर पर प्रभाव देखा है। 10 वाँ घर कैरियर, पिता, नींद आदि का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए लगातार परिवर्तन कैरियर में गड़बड़ी विकार अनिंद्रा या यहाँ तक कि पिता की जल्दी मौत आदि की संभावना को दर्शाता है। 11 वाँ घर जीवन में मौद्रिक लाभ अर्जित करता है, इसलिए दुर्घटनाओं के कारण नुकसान, चोरी आदि की संभावना होती हैं।
यदि मंगल 7 घर में है तब यह 10 वे घर को प्रभावित करता है| 1 और 2 घर के अलावा 7 और 2 घर में होता है जो व्यक्ति को धन के बारे में विचार देता है। यह व्यक्ति के परिवार को संकेत देता है और यह भी 8 घर के साथ 7 घर में विवाहित जीवन में मृत्यु या साझेदारी में व्यापार के संकेत देता है इसलिए इस घर पर मंगल दृष्टि की वजह से परिवार के सदस्यों के बीच संयमहीन और आक्रामक व्यवहार जैसे मुद्दों को बना सकता हैं। जिससे धन की हानि की संभावना भी होती है।
8 सभा यह 11, 2 और 3 घर को प्रभावित करता है। 3 घर एक व्यक्ति की मौखिक संचार कौशल ,व्यक्ति की आवाज, व्यक्ति की उपलब्धियों, भाइयों और बहनों का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए मंगल से भाई बहन के बीच तनाव पैदा हो सकता है, व्यक्ति बोलने में बहुत अशिष्ट और अभिमानी हो सकता है, दूसरों से अक्सर चोट और शायद सफलता से अधिक विफलताओं से पीडित हो सकता है।
12 वें घर में मंगल ग्रह 3, 6 और 7 घर को प्रभावित करता है। 12 वाँ घर व्यक्ति के खर्च प्रकृति को संकेत करता है । इसलिए व्यक्ति से अधिक खर्च प्रकृति का हो सकता है। 6 घर रोग, चोरी नौकरों के कारण को, मातृ चाचा आदि संकेत करता है। व्यक्ति को अम्लता के कारण बीमारियों, हाइपरटेंशन, रक्त आदि रोग होने की संभावना होती है।
इस प्रकार आप पर्यवेक्षक हैं कि अगर मंगल से इन घरों में परेशानी है ,जो विवाहित जीवन को प्रभावित करते है, इसलिए कुंडली में मंगल दोष अनुपयुक्त माना जाता है।
किन स्थितियों में जीवन साथी की कुडंली में मंगल दोष होने पर मिलान किया जाता हैं?

यदि शनि 1, 4, 7, 8, 12, घर में हो।
यदि शनि 7 वें घर के साथ 3 या 10वें दृष्टि को प्रभावित कर रहा हो। यानि यदि शनि 5 वें या 10वें घर में हैं।
यदि शक्तिशाली बृहस्पति कर्क, धनु ,मीन या वरगोतम, उच्चा नवमांश, सप्तमांश आदि पहले घर में हो।
यदि 7 वें घर में बृहस्पति 5 वें या 9 वें से प्रभावित हैं 3 या 11वें घर में रखा गया हैं।
यदि राहु या केतु 1 या 7वें घर में स्थित हो ।
मंगल के 21 वीं सदी में महत्व क्या हैं?

मंगल ग्रह एक लड़ाकू ग्रह है। जो कठिन परिस्थितियों से बाहर आने में मदद करता हैं, तनाव से निपटने में मदद देता है।
यह आक्रामकता से जरूरी चुनौतियों को लेना सिखाता हैं।
यह व्यक्ति को उघोग प्रकृति देता हैं ।
मंगल ग्रह उच्च अनुशासन, अच्छा प्रशासन और कर्म निर्णय लेना सिखाता हैं, ये सब किसी भी सफल नेता के लिए आवश्यक गुण है।
मंगल ग्रह एक सर्जन ,जनरल, एयर मार्शल, एडमिरल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री , व्यवसायी आदि के लिए एक उपहार हैं।